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________________ अमदावाद, खम्भात, घाटकोपर अने अंधेरीना ( करमचन्द जैन पौषधशाळाना ) चातुर्मास सुधीमां प्रफ विगेरे आवक-जावकमां घणो ज समय व्यतीत थयो, तदुपरान्त खास करीने दरेक चातुर्मासमां धर्मोपदेश उपरान्त शासनहितवर्धक अनेक कार्योमां तथा श्री सि. हे. श. शासनना सम्पादनकार्यमां पण समय जतो होवाथी लगभग पांचमे वर्षे आ ग्रन्थने प्रकट करी शकायो छे। या ग्रन्थने प्रकट थवाना विलम्बर्नु कारण वांचनारनी समजमां आवे ए हेतुथी मुम्बईना थयेला शासनहितवर्धक कार्योनी विस्तारथी, तथा अमदावाद, खम्भात, घाटकोपर अने अंधेरीना (वीलापार्लाना ) चातुर्मासमां थयेला शासनहितवर्धक-कार्योनी संक्षिप्त नोंध; आ ग्रन्थना अन्त भागमा आपेली छे। विशेषमां श्री सि. हे. श. शासनना प्रथम-विभागना सम्पादननुं काम पण सतत् चालु रहेतुं होवाथी अने तेने जल्दी प्रकट करवानो होवाथी आ ग्रन्थ प्रकट थवामां काईक सहेतुक विलम्ब पण थयो छे; आवां सहेतुक अनेकविध-कारणोने ध्यानमां लेतां थयेलो विलम्ब योग्यस्थाने ज थयेलो छे एम वांचकोने समजावQ पडे तेम नथी। व्याकरणशास्त्रस्थित-प्रदेशोने नव-नवीन युक्ति-प्रयुक्तिए आ ग्रन्थ विशेषतया नवपल्लवित करतो होवाथी अने आ काम हवे जल्दी समाप्त करी आपवानी शेठ दे. ला. जैन पु. फंडना कार्यवाहकोनी वारम्वार विनंतिओ थती होवाथी चालु चातुर्मासमां अंधेरीना (वीलापार्लाना) शेठ करमचन्द हॉलमां ते प्रत्ये विशेष लक्ष्य आपीने आ ग्रन्थ सम्बन्धि-विषयानुक्रम, प्रासंगिकनिवेदन, अनुपस्थितसूत्रो आदि आ ग्रन्थनी सुन्दरतामां सहायीभूत-थनारां प्रकरणोने तैयार करीने आ ग्रन्थने प्रकट करवामां आव्यो छ । प्रस्तुत प्रकाशनना सम्पादन-कार्यमा अत्यन्त उपयोगि-ताडपत्रीय-प्रति खम्भातथी लावी प्रकाशनना प्रासंगिक- आपनार शेठ मूलचन्द बुलाखीदास अने मोहनलाल दीपचन्द चोकसीए मददगारो- पुण्यानुबन्धि पुण्य उपार्जन कर्यु छे । __सम्पादन कार्यमा उपयोगी थई शके एवी आ ग्रन्थनी प्रेसकॉपी करावी मुद्रणकळाथी विभूषित बनावीने पुस्तकाकारे प्रकट करवानुं काम शेठ दे. ला. जैन पु. फंड तरफथी तेना कार्यवाहकोए कर्यु छे. अने ते फंडना नियम मुजब प्राचीन पुस्तकोर्नु प्रकाशन तथा अभ्यासियोनुं पठन-पाठन अने परिशीलन वधे ते हेतुथी ओछी किम्मते वेचवानुं नक्की थयेल छे, तेथी ते फंडना समग्र कार्यवाहकोए पण अनहद पुण्य उपार्जन कयु छे । एवी ज रीते भविष्यमां पण प्राचीन साहित्यना प्रकाशनमा सुन्दर फाळो आपीने पूर्वाचार्यप्रणीत साहित्यनी सेवना करवामां ते कार्यवाहको हर-हमेश उद्यमवन्त रहो एवी अमारी शुभेच्छा वतें ए स्वाभाविक छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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