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विशेषतः आ अवचूर्णिप्रन्थ कुशलशिल्पी - श्रीकनकप्रभकृत-न्यासोद्धारने लगभग मळतो छे, एटले नव पादनी अवचूर्णि अभ्यासीयोने न्यासोद्धारनी जेम अलौकिक- अलभ्य कल्पनाओ अने स्पष्टीकरणो जे पूरां पाडे छे ते अभ्यासकाळे स्वयमेव जणाई आवे छे ।
आ अवचूर्णि - प्रन्थमां श्रीशब्दानुशासनना प्रथमाध्यायना प्रथमपादना प्रथमसूत्रमा अने वृत्तिना मंगलरूप श्लोकथी शरु करीने तृतीयाध्यायना प्रथमपादना अन्तिमसूत्र सुधी तत्त्वप्रकाशशिका अपरनाम बृहद्वृत्तिस्थपदो, उदाहरणो अने प्रत्युदाहरणोनी अनुक्रमे स्पष्ट व्याख्याओ तथा सफलीभूत - सुन्दर - साधनिकाओ स्थळे स्थळे नजरे पडे छे अभ्यासिओ आ प्रन्थने अभ्यासनी नजरे निहाळे तो अवचूर्णिकारनुं सूत्रविषयक - सुन्दर - ज्ञान, वृत्तिस्थ - पि विज्ञान अने प्रायोगिक प्रतिभा ठाम ठाम वलोणामां माखणनी जेम तरी आवे छे ।
अवचूर्णिग्रन्थस्थित विषयप्रदेश.
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आजुबाजुना अगर आगळपाछळना सूत्रोथी अने मत-मतान्तरोथी थता - थनारा प्रयोगोनी सिद्धि स्थळे स्थळे करी बतावी छे; जेमके नमूना तरीके- “ समानानां तेन दीर्घः ॥ १ । २१ ॥” ए सूत्रथी शरु थता पांच सूत्रोना भावार्थ अने मतमतान्तरने लक्ष्यमां राखीने २९ रूपो जणाव्यां छे । विस्तारपूर्वक जोवानी अभिलाषावाळाओए श्रीसिद्ध हेमचन्द्र - शब्दानुशासनना प्रथम भागमां आनन्दबोधिनीवृत्तिना पृ. २६ - पङ्क्ति ३७ थी ४४ अने पृ. २७ पंक्ति १ थी ३० सुधीनी पङ्क्तिओ अभ्यासपूर्वक विचारवी ।
आ ग्रन्थमां श्रीसि. हे. श. शासननी शरुआतथी तृतीयाध्यायना प्रथमपाद सुधीना एटले सवा बे अध्यायना अर्थात् नवपादनां सूत्रोने ज अवचूर्णिकारे अवचूर्णि करेली छे एम कहीए तो ते पण बराबर ज छे ।
उपरोक्त नवपादनां एकन्दर ८६४ सूत्रो छे, तेमांथी नवे पादना अनुक्रमे २-५-५-१४१२-१२-१२-२१ अने २४ मळी कूल १०७ सूत्रोनी अवचूर्णि तो आ अवचूर्णिकारे करेली ज नथी । ए १०७ सूत्रनो सूत्रांक अने पृष्ठांक जाणवाना अभिलाषिओए परिशिष्ट नं. २ जोइ लेवुं । साधनिकाकवसरे आवतां सूत्रो जे नीचे टीपमां जणान्या छे ते जोवानी सुलभता माटे परिशिष्ट नं. १ मां उणादिसहित साते अध्यायना सूत्रो अनुक्रमे आपवामां आव्यां छे ।
ग्रन्थ प्रकट थतां थयेला लगभग पांच वर्ष.
आ प्रन्थमा सम्पादननी शरुआत मुम्बईमां करवामां आवेली, ते अवसरे साथै साथै श्रीसि. हे. श. शासनना प्रथमविभागना सम्पादननी शरुआत पण करवानी हती; छतां शरुआतमां खम्भातथी मंगावेली ताडपत्रीय प्रति उपरथी आ अवचूर्णिनी प्रेसकॉपी करावीने तपासी जोया पछी भावनगरना श्रीमहोदय प्रेसमां आ ग्रन्थने छापवानुं काम सौंपवामां प्रमाणे मुम्बईना चातुर्मासमां आरंभेला आ कार्यमां त्यार पछीना १ जूओ - श्रीहेम चन्द्राऽऽनन्दप्रन्थान्धिः - मन्थरत्नम् २ |
आव्युं । उपर जणाव्या
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