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________________ उपर सूचवेली प्रस्तावनाने वांच्या पछी कलिकालसर्वज्ञरचित-श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासननी महत्तानी साथे साथे आ अवचूर्णिनी महत्ता पण आपोआप जणाइ आवशे । अमो ए आनन्दबोधिनी नामनी वृतिनी रचना करवामां आ अवचूर्णिना सारभूत रहस्यनो उपयोग करेलो छे, कारण के अन्यस्थळे न मळी शके तेवी अवचूर्णिकारनी अलौकिक कल्पनाओ आ ग्रन्थमां अमोए निहाली छे, तेथी ज तेनी महत्ता अनिर्वचनीय छ एम कहेवामा लेशभर अतिशयोक्ति जेवू नथी। आ अवचूर्णि-ग्रन्थकारनी बीजी रचनाओ सम्बन्धि तपास करतां जणाय छे के 'श्रीहेमशब्दसंचय ' नामनो ग्रन्थ पण प्रायः तेमनो रचेलो छ । आ अवचूर्णिकारनी सुयो- ग्रन्थरत्न ४३६ पत्रमा सुन्दर-प्राचीन-लिपिबद्धपणे लखायेलो छे, अने जित एक विशेष रचना ते पाटणना भंडार नं. ३-४ ( फोफलीया शेरीना अने आगली शेरीना भंडार )मा विद्यमान छे, एम जैन ग्रन्थावळीमा जैनभाषासाहित्यविभाग पृ. ३०३ उपर जणावेलुं छे । ' अमरचन्द्र ' एवा नाममात्रथी आ ग्रन्थ पण तेओश्रीए रच्यो होय एम हाल तो अमे कल्पना करीए छीए, परन्तु निर्णय तो ए ग्रन्थने प्राप्त करीने जोयातपास्या पछी ज करी शकाशे । ए ग्रन्थ सम्बन्धि विशेष कथन हमारा तरफथी थनारा भाविप्रकाशनमां करवामां आवशे । श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनने अनुलक्षीने रचायेलां-अवचूर्णिग्रन्थो विशेष प्रमाणमां मळी आवे छे, परन्तु आ प्रधानतम व्याकरणनी मुख्यतया बे वृत्तिओ छे, अवचूर्णि समविषयक बृहवृत्ति अथवा तत्त्वप्रकाशिकाना नामथी प्रसिद्ध थयेल अने बीजी ग्रन्थो- लघुवृत्तिना नामथी साहित्यसृष्टिमां सुप्रसिद्ध छे, ए बन्ने वृत्तिओ मूळ ग्रन्थकारनी ज अर्थात् स्वोपज्ञ रचेली होवाथी एमां साते अध्यायना सूत्रोनी संकलना एक सरखी ज करेली छे. विशेषतया करेली वृत्तिनुं नाम बृहवृत्ति अथवा तत्त्वप्रकाशिका अने संक्षेपतया करेली वृत्तिनुं नाम लघुवृत्ति आप्यु छे ते यथार्थ एटले गुणनिष्पन्न नाम ज आपेलुं छे एमां शंकाने स्थान ज मळी शकतुं नथी । श्रीसि. हे. श. शासननी लघुवृत्ति पर लखायेल अवचूर्णिओ पण धणी मळी आवे छे, पण लघुवृत्तिविषयक अवचूर्णिनो उल्लेख करवो ते अत्र अप्रासंगिक छे, कारण के प्रस्तुत प्रकाशनरूप आ अवचूर्णिं तो बृहद्वृत्ति उपर रचायेली छे । ___ आ अवचूर्णिनी समकक्षामां आवी शके तेवा स्वोपज्ञ-शब्दमहार्णवबृहन्यास, श्रीरामचन्द्रगणिकृत-श्रीलधुन्यास, श्रीधर्मघोषगणिवरकृत-श्रीलघुन्यास, श्रीकनकप्रभकृत-श्रीन्यासोद्धार कक्षापट्ट, दशपाद-विशेषविशेषार्थ, श्रीसौभाग्यसागरकृत-दुण्ठिकबृहद्वृत्तिसारोद्धार आदि महान् मन्थरत्नो छ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003041
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasagar Gani
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1948
Total Pages396
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size21 MB
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