________________
:१०:
सर्व-प्रकारनी सामग्रीओथी विभूषित थयेला आ ग्रन्थनी प्रेसकॉपी करवामां संशोधन योग्य स्थळोने शोधवामां, प्रफ तपासवामां अने सम्पादन कार्यने सर्वथा सुशोभित बनाववामां स्वकीय साधनोद्वारा जेओए प्रत्यक्ष के परोक्ष सहायता समर्पण करवामां उदारता बतावी छे तेओ दरेकने आ तके स्मृतिपट पर लावीने आ निवेदनने समाप्त करवामां आवे छे ।
साधनिकामां आवेला सूत्रोना सूत्रांकने टिप्पणीमां जणाववामां, संशोधन-सम्पादनना कार्य प्रसंगमां अज्ञानताथी, अने विश्ववन्द्य-वीतराग भगवन्तनी आज्ञा-विरुद्ध अथवा प्रातःस्मरणीयसूत्रकार-कलिकालसर्वज्ञ-भगवान् श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजीना तथा अवचूर्णिकारना आशय विरुद्ध लखाई गयुं होय ते सम्बन्धि 'दुष्कृत मिथ्या थाओ' एवी हार्दिक अभिलाषापूर्वक अत्र विरमुं छु ।
अन्तमा प्रन्थना मुद्रण वखते कानो-मात्रा-अनुस्वार-अने विसर्ग विगेरे ऊडी गयां होय अगर अस्तव्यस्त थई गयां होय ते विवेकपूर्वक सुधारीने वांचवानी विवेकीयोने साग्रह भलामण करवामां आवे छे।
श्रीकरमचन्द्र जैन-पौषधशाळा-घोडबन्दर-रोड ) श्रीतपागच्छगगनाऽहमणि-गीतार्थसार्वभौम-आगमोद्धारक श्रीवर्धमा(विलापाला) मुंबई नं. २४. वि. सं. २००१ नजनागममन्दिरायनेकसंस्थानिर्माणोपदेशक-संस्थापक-शासनसंरक्षक
श्रीआनन्सागरसूरीश्वर-चरणचश्वरीकाशाश्वतसिद्धचकाराधन-अवसरे आश्विनपूर्णिमा
चन्द्रसागरः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org