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[ श्रीवीतरागस्तोत्रे छतां नरकने छेदनारा नारायण, रजोगुण नहिं छतां ब्रह्मा एवा कोई एक आपने नमस्कार थाओ. (४) ___ आ श्लोकमां जणावेलां छए विशेषणो परस्पर विरोधी जेवां जणाय छे. जे महेश-शंकर छे ते अभव केम होइ शके १, कारण के महेशने लोको भव कहे छे; पण भगवाने तो भवनो नाश को एटले अभव अने महान् आर्हन्त्य औश्वर्यवाळा होवाथी महेश छे.
तेमज जे नरकच्छिद्द-नारायण छे ते अगद केम होइ शके १, कारण के नरकच्छिदने लोको गदाधर कहे छे; पण भगवानने तो सहजातिशयवडे अगदरोगनो अभाव छे अने धर्मतीर्थ प्रवर्तावी भव्योनां नरकनो छेद करे छे एटले नरकच्छिद छे.
तेमज जे ब्रह्मा ते अराजस केम होइ शके ?, कारण के ब्रह्माने राजस कहे छे, पण भगवान तो कर्मरूपी रज रहित होवाथी अराजस छ; अने परब्रह्म-मोक्षमां लय पामेला होवाथी ब्रह्मा छे. आ सुसुंदर युक्तियुक्त विशेषणोथी हरि-हर ब्रह्मानुं निरसन कयु. ___अव०-अभ० हे वीतराग ! भवते तुभ्यम् , कस्मैचिदनिर्वाच्यस्वरूपाय नमोऽस्तु, यतः किं विशिष्टाय ?, अभवाय
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