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________________ अष्टमः प्रकाशः ] विश्वना पदार्थ मात्र अनेकान्तनी अपेक्षाए उत्पाद, व्यय अने ध्रौव्यथी युक्त छे. आथी दूध दूधरूपे व्यय थई, दहीं रूपे उत्पाद थाय ले, अने गोरसरूपे धौम्य रहे छे; ते वातने अध्यात्मोपनिषद्मां उपाध्यायजी श्रीयशोविजयजी महाराज जणावे छे के " उत्पन्नं दधिभावेन नष्टं दुग्धतया पयः । गोरसत्वात् स्थिरं जानन् स्याद्वादविज्जनोऽपि कः ? " ॥१॥ १३१ दुध खावाना नियमवालो दहीं खातो नथी, दहीं खावाना नियमवाळो दुध खातो नथी; अने गोरस खावाना व्रतवाळो बन्ने ( दहीं - दुध ) खातो नथी एम नहिं अर्थात् बन्ने खाय छे. आधी दूधरूपे नष्ट थए, अने दहींरूपे उत्पन्न थलुं गोरसज गणाय; माटेज जेने गोरसना आहारनो त्याग होय ते जेम दूधनो आहार न करे तेम दहींनो पण आहार न ज करे । ते माटे शास्त्रवार्तासमुच्चयमां भगवान् श्रीहरिभद्रसूरि जणावे छे के " पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोऽन्ति दधिव्रतः । अगोरसवतो नोभे तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् ॥ "" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003020
Book TitleVitrag Stotram
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorChandraprabhsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size10 MB
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