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________________ प्रकरण ७०-७३ ] क्षुरस, तथा घुड़सवारोंका प्रबन्ध [ ५९ ब्राह्मण इस कुत्तेको, जो यद्यपि अस्पृश्य है, तथापि उसे कन्धे पर ढोता है, वह लोभ ही की लीला है। इसलिये लोभ ही एक अच्छा नहीं है। इस प्रकार यह एक अच्छा नहीं है ' प्रबन्ध पूरा हुआ। ७२) अन्य किसी समय, केवल मित्रको साथ ले कर राजा रातमें घूम रहा था, तो उसे बड़े जोरकी प्यास लगी। तब उसने एक वेश्याके घर जा कर मित्रके मुखसे जल माँगा। तब बड़े प्रेमके साथ शंभ ली नामक दासी बड़ी देर करके, ईखके रससे भरा पात्र, कुछ खेदके साथ ले आई । मित्रने जो खेदका कारण पूछा, तो बोली कि पहले ईखकी एक ही लट्ठीमेंसे, जब वह शूलसे छेदी जाती थी तो, इतना रस निकल आता था कि घड़ेके साथ पुरवा (शकोरा) भी भर जाता था; पर इस समय राजाका मन प्रजाके विरुद्ध हो रहा है, इसलिये बड़ी देरके बाद भी केवल पुरवा ही भर पाया है। यही इस खेदका कारण है। राजाने उसके खेदके कारण को सुन कर विचार किया कि जिस वणिकने शिव मन्दिरमें वह बडा नाटक करवाया है उसको मैंने अपने मन ही मन, लूटनेका विचार किया था; इसलिये इसकी यह बात ठीक ही समझनी चाहिए । बादमें लौट कर अपने स्थान पर आ कर सो गया । दूसरे दिन प्रजा पर वत्सल भाव मनमें रखता हुआ राजा वेश्याके घर गया , उस दिन उसने यह कह कर राजाको सन्तुष्ट किया कि आज राजा प्रजाके प्रति कृपावान् है, क्यों कि आज ईखसे बहुत रस निकला है। इस प्रकार यह इक्षुरसका प्रबंध पूर्ण हुआ। ७३) अन्य किसी एक अवसर पर, धारा न गरी के शाखापुरमें एक गोत्र देवीका मंदिर था जिसमें नमस्कार करनेके लिये [ राजा ] नित्य आया करता था, उसमें कुछ वेलाका व्यतिक्रम हो गया। इससे वह देवता प्रत्यक्ष हो कर द्वार पर आ कर उस राजाको देखने लगी, जो उस समय बहुत थोड़े नौकरोंके साथ द्वारदेश पर आ पहुंचा था। राजाको देख कर ससंभ्रम वह अपने आसन पर बैठनेकी गड़बड़में, निजका आसन लांघ गई। राजाने प्रणाम करके इस वृत्तान्तको पूछा । देवताने निकट ही शत्रुसेनाका आना बता कर कहा कि शीघ्र जाओ। कुछ ही समयमें राजाने अपनेको गूर्जर सैन्यसे घिरा पाया । वेगवान् घोड़ेपर चढ़कर तेजीसे जाता हुआ वह धारा नगरीके फाटक पर पहुंचा, तो उस समय आ लू या और को लू या नामके दो गुजराती सवारोंने उसके कंठमें धनुष्य फेंके और यह कह कर उसे छोड़ दिया कि 'तुम इतने-ही-से मार डाले जाते !' ११९. जिसके 'गुण'-वान् धनुषने, मानों यह समझ कर ही कि यह भोज 'गुणी' है भागते हुए उस राजाको घोड़ेसे [ नीचे ] नहीं गिराया । इस प्रकार यह घुड़सवारोंका प्रबन्ध पूर्ण हुआ। [इसके आगे Pb प्रतिमें निम्नांकित प्रबंध पाया जाता है-] अन्यदा एक बार रातमें जग कर राजा भोज ने अपनी समृद्धिके विस्तारको अपने हृदयमें सोच कर काव्यके ये तीन चरण पढे यह इक्षुरसवाला प्रबन्ध किसी प्रतिमें, विक्रम राजाके सम्बन्धमें लिखा हुआ मिलता है और इसलिये इसके पहले, ऊपर पृष्ठ ९ पर भी यह आया हुआ है, लेकिन वहाँ यह प्रक्षिप्त मालूम देता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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