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५८] प्रबन्धचिन्तामणि
[द्वितीय प्रकाश कहीं भी नहीं है।' विद्वानोंके लिये भी इसका अर्थ समझना सन्दिग्ध होनेसे अण हि ल्ल पुर में इसके लिये दौडी पिटवाई जा रही थी तब किसी गणिकाने उस दौंडीको छू कर विज्ञापित किया कि-(१) गणिका, (२) तपस्वी, (३) दानेश्वर और ( ४ ) जुआड़ी रूप इन चार चीज़ोंको भेज दीजिये । उसके कहने पर राजाने उस दूतको ये चीजें सौंप दी। ' ऐसा ही होना चाहिये ' यह कह कर दूत चारों चीजें ले कर जैसे आया था वैसे ही वापस चला गया।
इस प्रकार चार वस्तुओंका यह प्रबंध है।
७०) एक बार राजा भोज वीरचर्यामें घूम रहा था। उस समय किसी अभागेकी स्त्रीको११६. लोकमें तो ऐसा सुना जाता है कि मनुष्यको [ अपनी आयुमें ] दश दशायें आती हैं। पर मेरे पतिकी तो एक ही [दरिद्र ] दशा [ सदा बनी रहती ] है, सो मालूम देता है कि बाकीको
चोरोंने चुरा लिया है।
यह पढ़ते सुन कर उसकी दुरवस्था पर राजाको दया आई और प्रातःकाल उसके पतिको सभामें बुला कर उसका कुछ भी अच्छा भविष्य सोच कर, दो बिजौरे नीबुओंको, जिनमेंसे प्रत्येकमें एक एक लाखकी कीमतके रत्न गुप्त भावसे रखवा कर, उसे इनाममें दे दिये । उसने भी इस वृत्तान्तको कुछ न समझ कर, कुछ दाम ले कर, साग-भाजीकी दूकान पर जा कर बेच दिये। उस ( दूकानदार ) ने भी उसका हाल न जान कर उन दोनों नीबुओंको किसीको भेंट दे दिया । उस आदमीने फिर से उन्हें उसी राजा भोज को भेंट किया ।
११७. समुद्रवेलाकी चञ्चल तरंगोंसे घसीटा हुआ यदि कोई रत्न पहाड़ी नदीमें आ भी जाय तो
वह फिरसे उसी मार्गसे उसी रत्नाकर ( समुद्र ) में ही चला जाता है । इस अनुभवसे राजाने [ इस उदाहरणमें ] भाग्य ही को तथ्य माना । क्यों कि, कहा भी है कि११८. वर्षा कालमें अशेष जगत्के प्रीत होने पर भी चातक तो जलका एक बूंद भी नहीं पाता । सच है, अलभ्य वस्तु कैसे मिल सकती है।
इस प्रकार यह बिजौरे नीबूका प्रबंध है।
७१) अन्य किसी एक रातको, राजाने अपने क्रीड़ा-शुक ( तोते ) को गुप्त रूपसे 'एक अच्छा नहीं है। यह बात पढ़ा कर उसे सिखाया कि तुम प्रातःकाल सभा यही वाक्य उच्चारण करना । बादमें जब उस तौतेने वैसा ही कहा तो राजाने पंडितोंसे उसका मतलब पूछा । वे उसका मतलब न जानते हुए, उसके जाननेके लिये, उन्होंने ६ महीनेकी मुहलत मांगी। इसके बाद उनका मुख्य व र रुचि इसका मतलब समझनेके लिये देशान्तरमें भ्रमण करने लगा। वहां किसी पशुपालने उससे कहा कि मैं इसका मतलब आपके स्वामीको बता सकता हूं। पर मैं अपने इस कुत्तेके बच्चेको, बूढा होनेके कारण, न तो ढो सकता हूं, और बड़ा प्रिय होनेके कारण, ना ही छोड़ सकता हूं। उसके ऐसा कहने पर उसे साथ लेनेकी इच्छासे वररुचि ने उस कुत्तेको कपड़ेमें लपेट कर अपने कन्धे पर रख लिया और उस पशुपालको साथ ले कर राजाकी सभामें गया। वहाँ उसको उत्तर देनेवाला बताया। इसके बाद, राजाने उस पशुपालसे उसी बातको पूछा । [ उसने जवाब दिया-] महाराज, इस जीवलोकमें लोभ ही 'एक अच्छा नहीं है'। राजाने फिर पूछा- कैसे ?' वह बोला-इसलिये कि यह
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