SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ६६-६९] भोजका भीमके पास चार वस्तुयें मांगना [५७ जवाब दिया कि-'दोनों नेत्र कान तक फैली हुई अंजन रेखाके बहाने कानोंके पास यह निर्णय करने गये है कि क्या यह वही श्री भोज हैं जिनके बारेमें आप लोगोंने पहले सुन रखा है ? यही बात ये पूछते हैं।' प्राकृत भाषामें, व्याकरणके नियमसे द्विवचनका प्रयोग बहुवचनसे होता है । इसी बातकी आशंका करके इसने 'पुच्छंति' ऐसा जवाब दिया है। अपनी बुद्धिसे बृहस्पतिकी भी अवज्ञा करनेवाले ऐसे जो पण्डित हैं उनके लिये भी जो अर्थ अविषयीभूत है, उसे सहसा ही कहती हुई यह मानों प्रत्यक्षरूपा भारती ही है। सो इसके पारितोषिकमें तीन लाख क्या चीज है ? । इसके बाद तीन बार 'तीन लक्ष' देनेके लिये कहनेके कारण अपने सामने ही उसे नव लाख दिलवाया। इस तरह राजा भोज को गूर्ज र जनोंकी चतुरता मालूम हो गई तो उसने कहा-'विवेक तो गूर्ज र देश ही में है ।' [और तब राजाने ‘मा ल वी य पंडित और गूर्जर गोपाल समान हैं ' इस वृद्धजनोंकी वाणीको सत्य मानकर उन्हें विदा किया। ] इस प्रकार यह वेश्या और गोपका प्रबन्ध है। ६८) वह राजा लड़कपनसे ही१११. मनुष्य यदि मृत्युको सिरपर बैठी हुई देखे तो उसे आहार भी अच्छा न लगे; तो फिर __ अकृत्य (अनुचित कार्य) करनेकी तो बात ही कहाँ हो । इस तत्त्वको जाननेके कारण धर्म कार्यमें अप्रमत्त रहता । एक बार [रातको] निद्रा भंगके अनन्तर 'कोई विद्वान् आ कर [कहता है ] कि एक तेज घोड़ेपर सवार हो कर तुम्हारे पास प्रेतपति ( यमराज ) आ रहा है, इस लिए उसके अनुसार धर्म-कर्मके लिए सज्जित हो जाइए ' इस बचनको बोलनेके लिए नियुक्त किये हुए पंडितको प्रतिदिन उचित दान देता रहा। एक बार अपराह्नमें राजा सिंहासन पर बैठा हुआ पान देनेवालेके दिये हुए बीड़ेसे पानके पत्तेको पहले ही मुँहमें डाल लिया । जब नीतिविदोंने उसका कारण पूछा तो इस प्रकार कहा-' यमराजके दाँतके भीतर पड़े हुए मनुष्योंके लिये वही वस्तु अपनी है जो या तो दान कर दी गई है, या उपभोगमें ली गई है । और तो संशयवाली है । तथा और भी ११२. [ मनुष्यको ] नित्य ही उठ उठ कर विचारना चाहिये कि आज मैंने कौनसा सुकृत किया । [दिनके पूरा होने पर ] आयुका एक टुकड़ा ले कर रवि अस्त हो जायगा । ११३. लोग मुझे पूछते रहते हैं कि आपका शरीर तो कुशल है । [ लेकिन यह नहीं सोचते कि-] __ हम लोगोंको कुशल कैसे ? आयु तो दिन-प्रतिदिन बीतती ही जा रही है। ११४. [ इस लिये ] कल जो करना है उसे आज ही कर लेना चाहिये, जो दोपहरके बाद करना है उसे उसके पहले ही कर लेना चाहिये । मृत्यु इसकी प्रतीक्षा नहीं करती कि इसने किया है या नहीं किया। ११५. क्या मृत्युकी मोत हो गई है, बुढ़ापा बूढा हो गया है, विपत्तियाँ विपदामें पड़ गई हैं और व्याधियाँ बीमार हो गई हैं जो ये आदमी दर्प करते रहते हैं ? इस प्रकार अनित्यता संबंधी चार श्लोकोंका यह प्रबंध है । भोजका भीमके पास चार वस्तुयें माँगना । ६९) अन्य किसी दिन भोज ने भी म राजाके पास दूतके मुखसे चार चीजें माँगी। एक वस्तु वह ‘जो यहाँ है, वहाँ नहीं; ' दूसरी · वहाँ है, यहाँ नहीं; ' तीसरी · जो दोनों जगह है; ' और चौथी । जो JainEducation १५-१६al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy