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प्रकरण ४७-५० ] भोज और भीमका प्रबन्ध
[३९ ४७) इसके बाद, एक दूसरे अवसरमें, राजा राजपाटीमें भ्रमणार्थ हाथीपर चढ़कर नगरके भीतर जा रहा था। उस समस किसी भिक्षुकको, पृथिवीपर गिरे हुए अन्न-कणोंको चुनते हुए देखकर बोला६७. अपना पेट भरनेमें भी जो असमर्थ हैं उनके जन्म लेनेसे क्या है !
-इस प्रकार उसके पूर्वार्ध कहनेपर; सुसमर्थ होकर भी जो परोपकारी नहीं उनके [ जन्म लेने ] से भी क्या है !
६८. 'उनके [ जन्म लेने ] से भी क्या है'-यह कहनेपर, दानशूर भोज नरेन्द्र ने उसको सौ हाथी और एक करोड़ सुवर्ण मुद्रायें दीं।
उसके इस वचनके अन्तमें [राजाने कहा६९. हे जननि ! ऐसा पुत्र न जन जो दूसरोंके आगे प्रार्थना किया करें।
___ उसके इस वाक्यके पश्चात् [भिक्षुक बोला]उसको भी उदरमें न धारण कर जो दूसरोंकी प्रार्थनाका भंग करें।
जब उसने इस प्रकार कहा तो राजाने पूछा- तुम कौन हो ?' इस पर नगरके प्रधान पुरुषोंने कहा, कि आपके यहाँ, नाना भाँतिके विद्वानोंकी घटामें जब अन्य किसी उपायसे प्रवेश न पा सका तो इसी प्रपञ्चसे स्वामिदर्शनकी इच्छा रखनेवाला यह [ व्यक्ति ] राज शेख र है । उसको उचित महादानोंसे पुरस्कृत करनेपर उस रा ज शेखर ने ये कवितायें पढ़ी[५४ ] अच्छृखल मेघोंके नादसे नाचती हुई मयूरियोंकी उन्नत आवाज़से आकुल, मेघागमन कालमें
( वर्षामें ) तो जमीनपर भी जल सुविधासे मिल जाया करता है। लेकिन, इस भयानक उष्णता भरे ग्रीष्म कालमें करुणासे एक दूसरेकी ओर देखनेवाली और इधर उधर ताकती हुई मछलियोंका यदि तू पालन नहीं करता, तो, रे कासार ( तालाब ) तेरी फिर सारता ही क्या है ! ७०. जिस सरोवरमें, मेंढ़क मरे हुओंकी भाँति कोटरोंमें सो गये थे, कछुए पृथ्वीमें छिप गये थे, और
गाढ़े पंकके ऊपर लोटनेसे मछलियाँ बारंबार मूर्छित हो रही थी, उसी तालाबमें, अकालके मेघने
उतरकर ऐसा किया कि उसमें कुंभस्थल तक डूबे हुए हाथियोंके झुंड पानी पी रहे हैं। इस प्रकार अ का ल ज ल द राज शेखर की यह उक्ति है।
राजा भोजकी गूजरातपर आक्रमण करनेकी इच्छा। ४८) इसके बाद, किसी साल, वर्षा न होनेके कारण राजा भी म के देशमें (गूजरा त में) जब, कण और तृण भी नहीं मिलता था ऐसे कुसमयमें, राजपुरुषोंने भोज का आना बताया ( अर्थात्-भोजराजाने गूजरात पर चढाई करनेकी बात चलाई ) । यह सुनकर भी म को चिन्ता हुई और उसने अपने दाम र नामक सान्धिविग्रहिकको आदेश किया कि कुछ दण्ड देकर इस साल भोज को यहाँ आनेसे रोको । उसका यह आदेश पाकर वह वहाँ गया । वह दामर अत्यंत कुरूप समझा जाता था। भोज ने [ उसका उपहास करनेकी दृष्टिसे ] कहा
७१. ' हे ब्राह्मण ! तुम्हारे स्वामीके सन्धि-विग्रह पदपर तुम्हारे जैसे कितने दूत हैं ? ' [ उत्तर-]
' यों तो बहुत ही हैं, हे मालव-नरेश ! पर वे सब गुणकी दृष्टिसे तीन प्रकारके हैं-अधम, मध्यम और उत्तम । [ इनमें ] जो जिस गुणके योग्य होता है उसीके अनुसार ये दूत उन उन
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