SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८] प्रबन्धचिन्तामणि [द्वितीय प्रकाश दिया, जो सजनोंके चित्तरूपी कैदखानेमें आबद्ध थे। इस प्रकार जब वह सारवान् काव्यका उद्गार प्रकट कर रहा था तो राजाने उसका परितोषिक देनेमें अपनेको असमर्थ समझ कर अनुरोधपूर्वक रोक दिया। [ यहाँ P. B. नामक प्रतिमें निम्नांकित वर्णन अधिक पाया जाता है-] [ ४९ ] शीतसे रक्षा करनेके लिये पटी ( वस्त्र ) नहीं है, आग सुलगानके लिये सगड़ी नहीं है। कमर भूमिपर घिस गई है-सोनेको शय्या नहीं है, कुटियामें हवाके रोकनेका कोई उपाय नहीं है, खानेको मुठ्ठीभर चावल नहीं है, घड़ीभर भी मनमें संतोष नहीं है, श्रृंगार की कोई वृत्ति नहीं है, मनको प्रसन्न करनेवाली कोई प्रिया नहीं है, लेनदारोंसे संकटमें पडा हूँ; ऐसी दशामें हे भोजराज ! तुम्हारे कृपारूपी हाथी द्वारा ही मेरी इस आपदाकी तटीका नाश हो सकता है। इस श्लोकमें आई हुई ग्यारह टी' के हिसाबसे भोज राजा ने उसे ११ लाखका दान दिया। एक वार, किसी विद्वत् कुलके निवासके लिये घर देखे जा रहे थे। उनके न मिलनेपर राजाने कहा कि जुलाहों और मच्छीमारोंको उजाड़ दिया जाय । जब राजपुरुष उन्हें उजाड़ने लगे तो एक जुलाहा उन्हें रोककर राजाके पास गया, और बोला कि-महाराज ! क्यों हमें उजाड़ रहे हैं ? तो राजाने पूंछा-क्या तूं कविता करता है ? वह बोला [५० ] जिसके चरणोंपर राजाओंके मुकुटके मणि लोटते रहते हैं ऐसे हे सा ह सां क महाराज ! मैं काव्य तो करता हूँ पर सुन्दर नहीं कर पाता । जैसा-तैसा करता हूँ पर सिद्ध नहीं होता। मैं उसका क्या करूँ ? मैं कविता करता हूँ, कपडा बुनता हूँ और अब जाता हूँ। धीवरकी बहू भी हाथमें माँस लेकर राजाके पास गई और बोली[५१] ' महाराज, तुम्हारी जय हो !'-'तू कौन है ? '_' लुब्धक (धीवर) की बहू ।'-' हाथमें यह क्या है ?'-' मांस!'-'सूखा क्यों है ?'- यों ही '-और यदि महाराज! आपको कौतुक हो तो कहती हूँ कि तुम्हारे शत्रुओंकी प्रियाओंके आँसूकी नदीके किनारे सिद्धोंकी स्त्रियाँ गान करती हैं । गीतमें अन्धे होकर हरिण चरते नहीं । इसलिये उनका यह मांस दुर्बल हो गया है। इस प्रकार उक्ति-प्रत्युक्तिमय ये दो काव्य सुनकर राजाने उन्हें नगरके भीतर स्थापन किया। एक बार, कोई विद्वान् , जो गर्वोद्धत था, उस नगरके निवासियोंको घरमें ही गरजनेवाले समझकर अवज्ञापूर्वक वादके लिये आया। नगरके समीप किसी पुरुषसे (धोबीसे ) जो वस्त्र धो रहा था बोला-'अरे साड़ीका मैल धोनेवाले ! नगरमें क्या हालचाल हो रहा है ? ' वह बोला [५२] घोड़े तोरण लगे हुए मकानोंको ढोते हैं, गायें केसरके सहित कमलोंको चरती हैं, दही यहाँ पर पीला मिलता है, तिलोमें यहाँ तैल नहीं होता और मकानोंके दरवाजेके शिखरपर हिरण चरा करते हैं। इसके बाद, किसी बालिकासे पूँछा-' तू कौन है ? ' तो वह बोली[५३ ] मरे हुए जहाँ जींदा होते हैं, जिनकी आयु बीत गई है वे उखासत होते हैं और अपने गोत्रमें __जहाँ कलह होता है, मैं उस कुलकी बालिका हूँ। इसका अर्थ न समझकर उसने विचार किया, कि जहाँ बालिका भी इस तरहकी विद्यावाली है वहाँके विद्वान् कैसे होंगे, वह उल्टे पाँव लौट गया। १ इस श्लोकमे 'टी' जिसके अंतमें है ऐसे पटी, कटी, कुटी, घटी, तटी इत्यादि ११ शब्द आये हैं उन शब्दोंको गिनकर ११ लाखका भोज ने उस कविको दान दिया ऐसा इसका तात्पर्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy