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प्रबन्धचिन्तामणि
[ द्वितीय प्रकाश
इसके बाद राजाने उसके पुत्रको [ यह समस्या दी ] - ' हिमालय नामक पर्वतों का राजा है ! - 'प्रवाल (तृणाङ्कुर ) की शय्याको शरीरका शरण' बनाया । राजाके इस वाक्यको सुनकर उसने उत्तर दिया५८. वह जो हिमालय नामक पर्वतोंका राजा है, तुम्हारे प्रतापरूपी अग्निसे पिघल रहा है; और विरहसे आतुर बनी हुई ना (हिमालय -पत्नी मेनका ) अपने शरीरको प्रवाल ( तृणांकुरों ) की शय्या के शरण कर रही है ।
इस प्रकार उसके समस्या पूरी कर देनेपर, ज्येष्ठकी पत्नीको राजाने समस्याका यह पद अर्पित कियाकिससे पिलाऊँ दूध ?
५९. जब रावण पैदा हुआ तो उसके एक शरीरपर दस मुँह देख कर उसकी माता बड़ी विस्मित हुई और सोचने लगी कि कौनसे मुँहसे इसे दूध पिलाऊँ ?
- उसने इस प्रकार यह समस्या पूरी की ।
इसके बाद राजाने दासीसे भी इस प्रकारका पद समस्या के लिये दिया- ' कंठमें काक लटक रहा है । ' ६०. पतिविरहसे कराल बनी हुई किसी स्त्रीने उस बेचारे कौवेको उडाया तो, बड़ा आश्चर्य मैंने
है सखि ! 'यह देखा कि वह काक उसके कंठमें लटक रहा * ।
उसने इस तरह पूरा किया। राजाने उस कुटुंबमेंकी लड़कीको भूलकर, अन्य सबको सत्कार करके बिदा किया ।
बाद में राजाने जब सर्वावसर ( राजसभा ) का विसर्जन किया और स्वयं चन्द्रशाला ( चाँदनी = महलके ऊपर की छत ) की भूमिमें छत्र धारण करके टहल रहा था, तब द्वारपालने उस लड़कीका वृत्तान्त कहा । राजाने उसे [ बुलाकर ] कहा - ' कुछ बोलो - तो वह बोली कि -
६१. हे राजन्, हे मुञ्जकुल के दीपक, हे समस्त पृथ्वीके पालक, राजाओंके चूड़ामणि ! इस भवन में
रात में भी, तुम इस प्रकार छत्र धारण करते हो वह उचित ही है । इससे न तो तुम्हारे मुखकी कांतिको देखकर चंद्रमाको लज्जित होना पड़ता है और न भगवती अरुन्धतीको ( पर पुरुषके मुखदर्शन से ) दुःशीलताका भाजन होना पड़ता है ।
उसके इस वाक्य के अनन्तर राजाने, जिसके चित्तको उसके सौन्दर्य और चातुर्यने हरण कर लिया था, उससे विवाह करके अपनी भोगिनी बनाया ।
* इस पद्य में 'काउ' इस देश्य शब्दपर श्लेष है । काउ काग - काक - कौआ वाचक तो प्रसिद्ध है ही इसके सिवा गलेमें जो एक लटकता हुआ छोटासा मांसपिंड उसका नाम भी काक - काग ( गूजराती - कागडा ) है । कोई विरहिनी स्त्रीका शरीर इतना कृश होगया है कि जिससे उसके कंटमें लटकता हुआ काग स्पष्टतया बहार दिखाई देता है। उसके घरके सामने आ आकर कौआ बोलता है, जिसका यह अर्थ समझा जाता है कि, उसका स्वजन आनेवाला है । लेकिन उसके वारंवार ऐसा बोलने पर भी वह जब नहीं आता मालूम देता है तो फिर वह विरहिनी चिढ़कर उस कौवेको उड़ा देती है । इस कौवे के उड़ाते समय उसके पास में बैठी हुई सखिको उसके दुर्बल कंटका वह काग नजर आया। इस अर्थकी घटना बतलाने के लिये कविने
,
समस्यापूर्ति बनाई है। इस ग्रंथके गुजराती और इंग्रजी भाषांतरकारोंने इन
इस पद्य काउ शब्दका प्रयोग कर उसकी पद्योंके कुछके कुछ उटपटांग अर्थ किये है |
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