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________________ ३२] प्रबन्धचिन्तामाणि [ प्रथम प्रकाश इस तरहके उसके अन्य बहुत वाक्य हैं जो परम्पराके अनुसार जानने चाहिये । बादमें उस मुझ को मारकर उसका सिर सूलीमें पिरोकर अपने आँगनमें रखवाया और उसमें रोज दहीं लगवा लगवाकर अपने अमर्षका पोषण करता रहा। ४२. जो मुञ्ज यशका पुञ्ज था, हाथियोंका पति था, अवन्ती का स्वामी था, सरस्वतीका पुत्र था, प्राचीन कालके जैसा कृती पुरुष था; वही काट देश के राजाके द्वारा अपने मंत्रीकी कुबुद्धिसे पकड़ा गया और सूलीपर चढ़ा दिया गया। हाय, कर्मकी गति कैसी विषम है ! ३८) उसके बाद, मा ल वा म ण्ड ल के मंत्रियोंने जब यह वृत्तान्त सुना तो, उन्होंने फिर उसके भतीजे भोज को राज्य पदपर अभिषिक्त किया । इस प्रकार श्रीमेरुतुङ्गाचार्य रचित प्रबंधचिन्तामणि ग्रन्थका 'राजा श्रीविक्रमादित्य प्रभृति महासाहसिक और परोपकार-आदि गुणरूपी रत्नोंसे अलंकृत राजाओंके चरित्र' नामक यह पहला प्रकाश समाप्त हुआ। * मालूम होता है मुंजकी यह करुण कथा उस जमानेमें बहुत लोक प्रसिद्ध और लोक साहित्यकी विशिष्ट वस्तु बनी हुई थी। मेरुतुङ्गसूरिने जो यहाँ पर ये कुछ संस्कृत, प्राकृत और देश्य पद्य दिये हैं वे था तो भिन्न भिन्न कर्तृक मुंज विषयक प्रबंघोंमेंसे उद्धृत किये गये हैं; या परंपरासे सुनकर लिख लिये गये हैं। मुंजकी इस कथामें एक तो संपत्तिकी अस्थिरता और दूसरी स्त्रीकी अविश्वसनीयता और तीसरी मुंज जैसे महाबुद्धिवान् शक्तिवान् राजाकी, दुश्मनके द्वारा की गई त्रासोत्पादक विटंबनाइन तीन बातोंका विचित्र संघटन हो जानेसे उपदेशकोंको अपने उपदेशकलिये यह एक वास्तविक घटनाका बतलानेवाला करुण रसका बोधदायक आख्यान ही मिल गया। अभी तक निश्चय नहीं हो सका कि इस कथामें ऐतिहासिक तथ्य कितना है और प्रबन्धकारोंकी बनावट कितनी है। यहाँपर जो पद्य दिये गये हैं वे तो प्रबन्धकारोंकी उपदेशात्मक उक्तियाँ मात्र हैं। कुछ पद्य तो मेरुतुङ्गसूरिके भी पीछेके बने हुए हैं और किसीने प्रसंगोचित समझकर इस ग्रंथमें प्रक्षिप्त कर दिये हैं। १. दही लगवाने का मतलब यह कि उसे देखकर कौए आवें और उस मस्तकपर बैठे। किसी दुश्मनका बहुत ही बुरा चाहना होता है तब लोग बोला करते हैं कि-उसके सिरपर तो कौए बैठेंगे। उसी लोकोक्तिका सूचक यह कथन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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