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प्रकरण २५-२७ ]
मूलराजका प्रबन्ध [१७ ] जिसने दानसे दारिद्यको नष्ट किया, शौर्यसे दुर्जनोंका दमन किया और कीर्तिसे रामचंद्रको
भी म्लानकर दिया ऐसे उस राजाने चिरकाल तक राज्यका उपभोग किया। इत्यादि स्तुतियों द्वारा पंडित लोगोंसे प्रशंसित होता हुआ वह इस प्रकार साम्राज्य कर रहा था, तब किसी अवसरपर सपा द ल क्ष देशका राजा, मूल रा ज पर चढ़ाई करनेके लिये गूर्ज र देश की सीमापर आया। दूसरी ओर, उसी समय तिलं ग देश के राजाका वार प नामक सेनापति भी चढ़ आया । इन दोनों से किसी एकके साथ जब युद्ध शुरू होगा, तब दूसरी ओरसे दूसरा शत्रु आक्रमण कर बैठेगा; ऐसी परिस्थितिमें क्या करना चाहिए इसका विचार मूल राज अपने मंत्रियों के साथ करने लगा, तो उन्होंने कहा कि कुछ समय कन्या दुर्ग में बैठकर व्यतीत कर देना अच्छा है; और जब नवरात्र आनेपर सपा द ल क्ष का राजा अपनी कुलदेवीकी आराधनाके किये चला जाय, तब अवसर पाकर वार प नामक सेनापतिको जीत लिया जाय । और इसके बाद वापस आनेवाले सपाद ल क्ष के राजाका भी पराजय किया जाय । उनके इस प्रकारके विचार सुनकर राजा बोला कि ऐसा करनेपर क्या लोगोंमें मेरे भाग निकलनेकी निंदा न होगी ? । इसपर वे मंत्री बोले
२५: [ परस्परके द्वन्द्व-युद्धभे ] भेड़ा जो पीछे हटता है वह प्रहार करनेके लिये है, और सिंह भी
आक्रमण करते समय क्रोधसे संकुचित होता है । हृदयमें वैरभावको भर रखनेवाले और गूढ़ यंत्र
चलानेवाले बुद्धिमान लोग किसी अवगणनाकी परवा न करके [ सब कुछ ] सह लेते हैं। इस प्रकार उनकी बात सुनकर मूल राज ने कन्था दुर्ग में जाकर आश्रय लिया । इधर सपादलक्ष के राजाने गूर्ज र देशमें ही सारा वर्षाकाल बिताया और जब नवरात्रके दिन आए तो उस रणभूमिमें ही शाकम्भरी नगरकी स्थापना कर गोत्रदेवी भी वहीं मँगा ली और वहीं नवरात्रकी पूजाका समारम्भ किया । मूल राजने यह हाल सुनकर मंत्रियोंके बतलाए हुए उपायको निरर्थक समझा । उसको तत्काल एक मति सूझ आई । राजकीय भेट-सौगाद भेजने के बहाने उसने अपने सब आसपासके सामंतोंको बुलवा भेजा और फिर जासुसी काम करनेवाले अधिकारियोंके पाससे सभी राजपूतों और सैनिकोंको, वंश और चरित्रसे, पहचान कर उन्हें यथोचित दान आदिसे सम्मानित किया और समयका संकेत बताकर उन सबको सपा द ल क्ष देशके राजाके शिबिरके आसपास तैनात कर दिया। निश्चित दिनपर स्वयं, अपनी प्रधान साँढनीपर बैठकर उसके पालकके साथ बहुत सी भूमि पार करके, प्रातःकाल जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सके उस तरह, सपा द ल क्ष नृपतिकी छावणीमें जा पहुँचा । सांढनी परसे उतरकर हाथमें तलवार लेकर मूल रा ज ने अकेले ही वहाँ पहुँचकर द्वारपालसे कहा-इस समय राजा किस काममें होते हैं ? । जाकर अपने स्वामीको कहो कि मूल रा ज राजद्वारमें प्रवेश कर रहा है । यह कहता हुआ [ द्वारपालने कुछ आनाकानी की तो ] अपने भुजदण्डके बलसे उसे द्वारपरसे हटा दिया। फिर जब वह ' यह श्री मूल राज द्वारमें प्रवेश कर रहे हैं '-इस प्रकार पुकार ही रहा था कि उतनेमें तो वह, उस राजाके तंबूके भीतर प्रवेश करके, राजाके पलंग पर ही स्वयं जा बैठा। यह देखकर क्षणभर तो वह राजा भयभीत होकर मौन ही रहा । फिर कुछ भय दूर करके उसने पूछा कि-'क्या आप ही श्री मू ल रा ज हैं ?'। मूल रा ज के मुँहसे 'हाँ' यह शब्द सुन कर जितनेमें वह कुछ समयोचित बोलना चाहता था, उतनेमें तो पूर्व संकेतित चार हजार सैनिकोंने उस राजाके बडे डेरे ( तंबू ) को चारों ओरसे घेर लिया। इसके बाद मूल राज ने उस राजासे इस प्रकार कहा-इस भूमण्डलमें, ऐसा कोई युद्धवीर राजा, जो मेरे सामने लड़ाईमें टिक सके, है या नहीं-इसका मैं सोच किया करता था और कोई वैसा वीर निकल आवे उसके लिये मैं सैंकडों मिन्नते मनाता था । भाग्ययोगसे आप
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