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________________ २० ] प्रबन्धचिन्तामणि [ प्रथम प्रकाश होश में आकर उठा देता था । तभीसे चा पो त्क टों का दान उपहासके रूपमें मशहूर हुआ' । वह इस प्रकार बार बार चिढ़ाया जानेपर एक दिन उसने अपने नौकरोंको तैयार किया और जब मामाने बेहोशी में राज्यासनपर बिठाया तो उसे मारकर सचमुच ही वह राजा बन गया । २५) सं० ९९३ के आषाढ़ सुदी १५ बृहस्पति वारको, अश्विनी नक्षत्र और सिंह लग्नमें, जन्मसे इक्कीसवें वर्ष में मूलराज का राज्याभिषेक हुआ । [ B. P. आदर्शमें ' सं० ९९८ में श्री मूलराज का राज्याभिषेक हुआ ' ऐसा पाठ मिलता है । ] २४. 'शास्त्रमें तो सुना जाता है कि मूलार्क (मूल नक्षत्रका सूर्य ) सब प्रकारका कल्याण करता है । लेकिन आश्चर्य है कि वर्तमानमें तो मूलराज ही ने ऐसा योग कर दिया है [ १२ ] *उस विभुने स्वप्नमें आकर कहा कि चा पोत्कट वंशके राजा है ह य भूपतिके वंश वंशो - ज्ज्वला कन्या है | अगर तुमको वह दान की जाय तो निःशंक भावसे उसके साथ विवाह कर लेना क्यों कि वह मृगाक्षी अपने उदरमें सार्वभौम ( चक्रवर्ती ) राजाको धारण करेगी । [ १३ ] श्री गुर्जर मण्डल में उसकी कुक्षिसे श्री राजिराज का पुत्र राजा श्री मूलराज पैदा हुआ । अपने अद्भुत महाप्रभावसे, जब वह दिग्विजयके लिये उद्यम करता था तो उस समय केवल पृथ्वी ही नहीं काँप उठती थी परंतु उसके साथ उसके स्वामी राजाओंके दिल भी काँप उठते थे । [ श्रीसौराष्ट्र मण्डल में श्री सा .... सिंहके साथ युद्ध हुआ यह प्रबंध प्रसिद्ध हैx । ] [१४] जिसने अपने शत्रुओंको जीत लिया ऐसे उस राजाको गूर्जरे श्वरों की राज्यश्री, उसके गुण आवर्जित होकर बाणरिपु (विष्णु) को लक्ष्मीकी तरह, स्वयं वरनेको आई । [ १५ ] उस महा इच्छावाले राजाने कच्छ के राजा लक्ष को, शत्रुको बुरी तरह घायल करनेवाले अपने बाणों का लक्ष्य बनाया । [ १६ ] उस असामान्य पराक्रमीने लाटे श्वर के दुर्वारणीय सेनानायक वाण ( र ? ) प को मारकर हाथियों को ग्रहण किया था । १ गूजरातमें, उस जमानेमें शायद यह एक लोकोक्ति प्रचलित थी कि - ' यह तो चा उडों का दान है' । किया हुआ दान मिलेगा या नहीं और मिलनेपर भी वह स्थिर रूपसे रहेगा या नहीं ऐसा जिस दान पर विश्वास नहीं किया जाता उसे लोग चाउडोंका दान कहकर उसका उपहास किया करते थे । 1 २ मूलराज शब्द पर यह श्लेष है । इसका दूसरा अर्थ मूलराज यानि मूलचंद्र यह निकाला गया। राज शब्द चंद्रमाका भी वाचक है । ज्योतिष शास्त्र के विधानानुसार सूर्य जब मूल नक्षत्र में आता है तब वह मूला र्क योग कहलाता यह योग अनेक तरहके शुभ कल्याणोंका करनेवाला माना जाता है। लेकिन यह राजा तो मूलार्क नहीं है मूलराज ( = मूलचंद्र ) है, तो भी इसने अपने उदयकालमें वैसे ही अनेक कल्याणकारक योग कर बतलाए हैं, इसलिये यह खास आश्चर्य की बात है । * १२ और १३ अंक वाले ये दोनों पद्य किसी पुरानी प्रशस्तिमेंसे उद्धृत किये गये मालूम देते हैं । पहले पद्यमें यह बतलाया गया है कि - शायद शंभु या अन्य किसी देवने मूलराज के पिता राजिराज को स्वप्न में आकर यह कहा कि-चा पोत्कट वंशका राजा, जो हैहय वंश का है, उसकी गुणवती कन्यासे विवाह करनेके लिये तुझसे कहा जाय तो उसे निःशंक होकर ब्याह लेना । क्यों कि उसकी कोख में ऐसा गर्भ उत्पन्न होगा जो सार्वभौम राजा बनेगा । यह पद्य ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्त्वका 1 इसमें चापोत्कट वंशको है ह य वंश कहा है । चावडाओंके मूल वंशका विचार करनेके लिये यह एक नया उल्लेख है । विशेष विचारके लिये अगला विवेचनात्मक भाग देखना चाहिए । X यह पंक्ति, मूल प्रतिमें अपूर्ण ही प्राप्त हुई है । इसका स्पष्ट कथन क्या है सो ज्ञात नहीं होता । सौराष्ट्र के किसी राजा के साथ मूलराजके युद्ध होनेका इसमें उल्लेख किया गया मालूम देता है । यह पंक्ति दूसरी दूसरी प्रतियों में नहीं मिलती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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