________________
प्रकरण २४-२५ ] मूलराजका प्रबन्ध
[ १९ चौलुक्यवंशका प्रारंभ। २३. हाथी ( मातङ्ग होनेके कारण ) सेवाके योग्य नहीं रहे, पहाड़ोंके पर गिर गये, कच्छप जड़
प्रीतिवाला है, शेषनागको दो जीमें हैं, इसलिये पृथ्वीको कौन धारण करने योग्य है-इस तरह चिन्ता करनेवाले विधाताकी सायंकालीन संध्याके चुल्लूसे कोई तलवारधारी वह सुभट उत्पन्न हुआ
[जिससे चौलुक्यवंशका प्रारंभ हुआ।]
[ यह पद्य श्लेषात्मक है और उस अर्थ ही में इसका कवित्व है । एक समय ब्रह्मदेव सन्ध्या-कृत्य कर रहे थे उस समय पृथ्वीकी दशाका उन्हें विचार आया । पृथ्वीको धारण करने योग्य कौन कौन पदार्थ है इसका विचार करते हुए उनके मनमें दिग्गजोंका खयाल आया लेकिन वे असेव्य मालूम दिये क्यों कि वे मातंग कहलाते हैं। (संस्कृत भाषामें मातंग शब्दके दो अर्थ है-१ हाथी, और २ चंडाल)। फिर उन्हें कुलाचल पर्वतोंका खयाल आया, लेकिन वे पक्ष-विहीन मालूम दिये। (पुराणोंमें पर्वतोंके पक्ष यानि पर इन्द्रने काट डाले ऐसी कथा प्रचलित है।) संस्कृतमें पक्ष शब्दका अर्थ पांख भी होता है। फिर ब्रह्माका खयाल कूर्म यानि कच्छपकी ओर गया, लेकिन वह जडप्रीतिवाला मालूम दिया । जो जडके साथ प्रीति रखता हो वह पृथ्वीको धारण करने जैसा महान् कार्य करने योग्य कैसे हो सकता है ? (संस्कृतमें जड यानि मूर्ख और जलपानी ऐसे दो अर्थ इसके होते हैं। कच्छपकी प्रीति जल यानि पानीके साथ होती ही है। इसके बाद ब्रह्माका ध्यान फणिपति-शे तरफ गया-लेकिन वह उन्हें दो-जीभा मालूम दिया । सर्पके दो जीभे होती ही हैं । ( संस्कृतमें द्विजित दो-जभिका अर्थ चुगलखोर ऐसा निन्दात्मक भी होता है।) इसलिये जो दो-जीभा हो वह पृथ्वीका भार उठाने लायक नहीं हो सकता। इस प्रकार ब्रह्मा इनकी अयोग्यताका खयाल कर चिन्तामग्न हो रहे थे ओर चुल्लूमें पानी भरकर संध्याञ्जलि देने का विचार कर रहे थे, उतनेमें उस चुल्लूमेंसे, हाथमें तलवार धारण किये हुए एक सुभट बाहर निकला और ब्रह्मदेवने उसे ही पृथ्वीका भार वहन करने में समर्थ और योग्य समझ कर उसे पृथ्वीका शासक नियत किया। उसकी जो संतान हुई वह चौ लुक्य वंश के नामसे प्रसिद्ध हुई।]
५. मूलराजका प्रबंध । २४) पूर्वोक्त श्री भूयराजके वंशज मुंजा ल देव के तीन पुत्र हुए जिनका नाम राज, बीज और द ण्ड क था । ये तीनों भाई तीर्थयात्राके लिये निकले । श्री सो मे श्व र को नमस्कार करके वहांसे लौटते हुए अण हि ल्ल पुर में आए । वहां पर वे सामन्त सिंह राजाको घुड़दौड़ देख रहे थे । राजाने विना ही कारण घोड़ेको कोड़ा मारा जिसे देखकर, राज नामक क्षत्रियने, जो कार्पटिक ( कापड़िये ) का वेश धारण किये हुए था, पीड़ित होकर अपना सिर हिलाते हुए, आह ! आह ! ऐसा शब्द कहा । राजाके उसका कारण पूछने पर उसने कहा कि, घोड़ेकी यह अत्युत्तम विशेष चाल जो न्युंछन करने योग्य है, उसको न समझकर आपने जो कोड़ा मारा वह मुझे जैसे अपने ही मर्मपर लगा अनुभूत हुआ। उसकी इस बातसे चकित होकर राजाने वह घोड़ा उसीको चढ़नेके लिये दिया। घोड़ा और घुड़सवार दोनोंका सदृश योग देखकर उसने पद पद पर उनका न्युछन किया, और उसके इस आचरणसे किसी महत् कुलवाला उसे समझकर, अपनी ली ला दे वी नामक बहनका उसके साथ ब्याह कर दिया। कुछ समय बाद · जब वह गर्भवती हुई तो अकालमें ही उसकी मृत्यु हो गई । मंत्रियोंने, गर्भस्थ सन्तानका मरण न हो जाय इस विचारसे उसका पेट चीरकर सन्तानका उद्धार किया । मूल नक्षत्रमें जन्म होनेके कारण उसका नाम मूल रा ज रखा गया । उदयकालीन सूर्यकी भाँति जन्मसे ही तेजोमय होनेके कारण वह सबका आहरपात्र हो गया । अपने पराक्रमसे वह मामाके राज्यको बढ़ाता रहा । सा मंत सिंह मदमत्त होकर उसको कभी राज्यासनपर बिठा देता था और फिर
१ यह पद्य चौलुक्य वंशकी आद्य उत्पत्तिका सूचक है। किसी कोई शिलालेखमेंसे यह लिया गया मालूम देता है। ब्रह्माके चुल्लूमेंसे इस वंशका मूल पुरुष पैदा हुआ और इसी लिये इस वंशका नाम चौलुक्य हुआ, यह पीछेके भाट लोगोंकी
कल्पना है और इसका कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है यह अगले भागसे स्पष्ट हो जायगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org