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१०. ग्रन्थकारके जीवनके विषयमें ।
ग्रन्थकार मेरुतुङ्ग सूरिके जीवन आदिके विषयमें कोई विशेष वस्तु ज्ञात नहीं होती । ये नागेन्द्र गच्छके आचार्य थे और इनके गुरुका नाम चन्द्रप्रभ सूरि था । धर्मदेव नामक विद्वान् - जो शायद इनके वृद्ध गुरुभ्राता या अन्य कोई गच्छवासी स्थविर साधु-पुरुष थे- उनके पाससे इन्होंने इस ग्रन्थकी रचनामें बहुत कुछ ऐति सामग्री प्राप्त की थी । गुणचन्द्र नामक इनका प्रधान शिष्य था जिसने इस ग्रन्थकी पहली संपूर्ण प्रातीलपि लिख कर तैयार की थी ।
प्रबन्धचिन्तामणि
इनकी एक और ग्रन्थकृति उपलब्ध होती है जिसका नाम महापुरुषचरित है । इस ग्रन्थमें ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर - इस प्रकार पाँच तीर्थंकरोंका संक्षिप्त चरित वर्णन है । इसके अतिरिक्त और कोई इनकी कृति हमें अभतिक ज्ञात नहीं हुई ।
अन्तमें हम आशा करते हैं कि हिन्दी-भाषा-भाषी जिज्ञासु जन, इस ग्रन्थके वाचन-मनन से अपने प्राचीन इतिहास विषयक ज्ञानमें उचित वृद्धि करेंगें; और खुद ग्रन्थकारने, ग्रन्थान्तमें जो नम्र निवेदन किया है उसकी तरफ लक्ष्य रखनेकी सूचना कर, उसी कथनको उद्धृत करते हुए, हम अपना यह प्रास्ताविक वक्तव्य समाप्त करते हैं ।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा, वि० सं० १९९७ भारतीय विद्या भवन आन्ध्रगिरि ( अन्धेरी ), बम्बई.
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यथाश्रुतं सङ्कलितः प्रबन्धैर्ग्रन्थो मया मन्दधियापि यत्नात् । मात्सर्यमुत्सार्य सुधीभिरेष प्रोडुरैरून्नतिमेव नेयः ॥
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- जिन विजय
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