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प्रकरण २२५-२२९ ] प्रकीर्णक प्रबन्ध
[ १५१ चाहा । इस पर दोनोंके सैनिकोंमें लड़ाई छिड़ गई । असीम युद्धसे जूझते हुए, अतिप्रिय ऐसी देवभक्तिसे उत्साहित हो कर उसके पाँचों पुत्र, वहां मारे गये और वे मर कर पाँच क्षेत्रपाल हुए। उनके क्रमशः ये नाम हुए - १ कालमेघ, २ मेवनाद, ३ भैरव, ४ एकपद, और ५ त्रैलोक्यपाद । तीर्थके विरोधियोंको मृत्युके मुँह पहुँचाते हुए वे पाँचों विजयी हो कर पर्वतके चारों ओर वर्तमान हैं।
२२७) फिर उनका धारा नामक पिता जो अकेला ही बच रहा था, उसने का न्य कु ब्ज देशमें जा कर श्री बप्प भट्ट सूरि के व्याख्यानके अवसरपर श्री संघकी आन दे कर यह कहा कि-'रैव त क तीर्थमें दिगंबरोंने अपनी वसति बना ली है और श्वेताम्बरोंको पाखंडी कह कर पर्वतपर चढ़ने नहीं देते हैं । इस लिये उनको जीतकर उस तीर्थका उद्धार कीजिये और अपने दर्शनकी प्रतिष्ठा करके तब फिर ये व्याख्यान दीजिए'। उसके ऐसे वचन रूप इंधनसे जिनकी क्रोधरूप अग्नि प्रज्ज्वलित हो उठी वेसे वे आचार्य उस आ म राजा को साथ ले कर, उसी श्रेष्ठीके साथ, पर्वतकी उपत्यकामें पहुँचे । सात दिनोंमें, वादस्थानमें दिगंबरोंको पराजित करके संघके सामने श्री अम्बिकाको प्रत्यक्ष किया। 'इकोवि नमुक्कारो' और 'उज्जिन्तसेलसिहरे ये दो गाथायें अम्बिकाके मुखसे सुन कर सितांबर दर्शनकी प्रतिष्ठा सिद्ध हुई और फिर वे पराजित दिगंबर 'बलानक मंडपसे' झम्पापात करके नीचे गिर पड़े।
इस प्रकार यह क्षेत्राधिपोत्पत्तिका प्रबंध समाप्त हुआ।
सोमेश्वरका अपने भक्तोंकी परीक्षा करना। २२८) एक बार, भवानीने शिवसे पूछा कि-'तुम कितने कार्पटिकोंको राज्य देते रहते हो?'-उसके ऐसा पूछनेपर [ शिवने कहा-] 'इन लाखों यात्रियोंमें जो कोई एक पूरा भक्ति-परायण होता है उसीको मैं राज्य देता हूं' । इस बातकी परीक्षाके लिये, गौरी (पार्वती)को पंकमग्न बूढ़ी गाय बना कर और स्वयं मनुष्यरूप धारण कर, शिवजी तटस्थ खड़े रहे और कीचड़मेंसे गायका उद्धार करनेके लिये पथिकोंको बुलाने लगे। वे सब लोक तो सोमेश्वर नजदीक होनेसे उसके दर्शनके लिये बडे उत्कंठित थे, इसलिये उन्होंने उसका उपहास किया । पर पथिकोंका कोई एक दल कृपालु हो कर उसके उद्धारका प्रयत्न करने लगा तो शिवजी सिंहरूप धारण करके उन्हें डराने लगे । तब उनमें से एक ही ऐसा पथिक निकला जो मृत्युकी भी परवा न करके उस गायके समीप पहुँचा। उसीको अलग बतला करके शिवने पार्वतीको बताया कि वही एक राज्यके योग्य है ।
इस प्रकार यह वासनाका प्रबंध समाप्त हुआ।
पूर्वजन्मका किया भोगना। २२९) सो मे श्वर की यात्राको जाता हुआ एक कार्पटिक रास्तेमें किसी लोहारके घर सोया। उस लोहारकी स्त्रीने अपने पतिको मार कर कृपाणिकाको उस कार्पटिकके सिरहाने रख दी और फिर चिल्लाने लगी। आरक्षक ( राज्यके सिपाही ) ने वहाँ आ कर उस अपराधीके हाथ काट डाले। इससे वह सदैव उस देवको उपालंभन दिया करता । एक रातको देव प्रत्यक्ष हो कर बोला -'तुम अपने पूर्व-जन्मकी बात सुनो । एक बार दो भाइयोंमेंसे एकने एक बकरीके दोनों हाथोंसे कान पकड़े और दूसरेने उसे मार डाला । उसके बाद वह बकरी मर कर यह स्त्री हुई । जिसने इसे मारा था वह इस समय इसका पति हुआ । तुमने जो इसके कान पकड़े थे, इससे तुम्हारा समागम होनेपर, तुम्हारे हाथ काटे गये । सो इसमें मुझे क्यों उपालंभ देते हो ?'
इस प्रकार यह कृपाणिका-प्रबंध समाप्त हुआ।
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