SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण २०३-५ ] प्रकीर्णक प्रबन्ध [१३५ ' नहीं महाराज, हम लोग सुखी नहीं हैं।' उनके ऐसा कहनेपर विभ्रमसे भ्रान्तचित्त हो कर उनको बिदा किया; और फिर कभी किसी बातकी विचारणाके समय नगरके प्रधान जनोंको बुला कर पूछा कि 'आप लोग क्यों सुखी नहीं हैं ? और साथ ही काठके पात्रके साथ उस कुद्दालको ऊंचा करके वैसे रखनेका कारण भी पूछा। उन्होंने कहा कि-'जहाँपर स्वामीने काष्ठपात्र आदि देखा है वह धनी, अपने धनकी गिनती न जान कर, कठौतसे ही उसकी नापको जतानेका संकेत करता है । और हम लोग सुखी नहीं हैं सो तो आपके सन्तानाभावसे । यह नगर कोटिध्वजोंसे भरा है। आपने चिर कालतक इसका लालन किया है, पर अब कौन इसे उन्नत बनावेगा?' यह सुन कर राजाने अपने अंतःपुरकी पुरानी रानियोंको बंध्या समझ कर नई रानीके करनेकी इच्छा की। तब उसकी अनुमति पा कर वे लोग, पुष्य नक्षत्रवाले रविवार के दिन,पुष्यार्क योगमें, किसी बड़े शकुन शास्त्रज्ञके साथ शकुनागारमें गये । वहाँ पर, एक मात्र लकड़ीका बोझ उठा कर अपना पेट भरनेवाली ऐसी कंगालिन स्त्रीको देखी जिसके सिरपर दुर्गा बैठी थी और जो आसन्नप्रसववाली स्थितिमें थी । शकुनज्ञने उसकी अक्षतादिसे पूजा की। उन लोगोंने कारण पूछा तो उसने कहा कि-'अगर बृहस्पतिका मंतव्य सच है, तो इसके गर्भमें जो कोई लड़का है वही यहाँका भावी राजा होगा। इस बातको असंभव समझ कर उन्होंने लौट कर मानोन्नत उस राजाको, ज्यों की त्यों, वह सब बात कह सुनाई । राजाने इससे मनमें खिन्न हो कर, अपने निजी मनुष्यों को भेज कर, उस स्त्रीको जमीनमें गाड़ देनेकी आज्ञा की। उन्होंने जा कर उससे कहा कि ' इष्ट देवताका स्मरण कर लो' । उनके ऐसा कहनेपर वह मरणभयसे व्याकुल हो उठी । इतने में संध्याके हो जानेसे उनकी अनुज्ञा ले कर वह शौच जानेके लिये गई, तो वहीं उसको पुत्रका प्रसव हो गया। वह उसे वहीं छोड़ कर लौट आई। फिर उसको जमीनमें गाड़ कर उन मनुष्योंने राजाको उसकी सूचना दी । इधर एक हिरनी उस बालकको, नित्य दोनों शाम दूध पिला कर, बड़ा करने लगी। उस समय, महालक्ष्मी देवीके सामनेकी टंकशालामें जो नया शिक्का पड़ने लगा उसमें हिरनीके चार पैरके नीचे एक बालककी प्रतिकृति पडती हुई देखी गई, जिसके कारण लोगोंमें यह बात फैलने लगी कि कोई नया राजा उत्पन्न हुआ है । इससे उस रत्न शेख र ने पता लगवा कर उस बच्चेको मरवा डालनेके लिये चारों ओर अपने सैनिक भेजे । उन्होंने प्रयत्न करके उस बालकको प्राप्त किया। लेकिन बाल-हत्याके भयसे स्वयं उसे न मार कर, नगरके सदर दरवाजेके रास्तेमें इस तरह रख दिया, कि जिससे सायंकालके समयमें, उस मार्गसे निकलनेवाली गायोंकी खुरीकी चोटोंसे आप ही आप वह मर जाय और लोकमें कोई अपवाद न हो। उसे वहाँ छोड़ कर, कुछ दूर खरे हुए, वे जब देखने लगे तो उतनेमें वहाँ गायोंका एक झुंड आता उन्हें दिखाई दिया । पर, मानों मूर्तिमंत पुण्यके पुंजकी नाई उस बालकको देख कर वे सब गायें, पैरोंसे स्तंभितकी नाई, खड़ी रह गई। इसके बाद, पछिसे आगे आ कर एक साँडने, वृषभ जैसे ही तेजस्वी उस बालकको, अपने पैरोंके बीचमें रख कर, सब गायोंको आगे चलनके लिये प्रेरित किया। बादमें, इस वृत्तान्तको सुन कर, राजा उन सामन्त और नगर लोकोंके द्वारा, उस बालकको मँगा कर, अपने पुत्रकी नाई उसका पालन करने लगा। 'श्री पुञ्ज' ऐसा उसका नाम रखा गया । श्रीमाताकी उत्पत्तिका वर्णन । २०५) इसके बाद, जब वह रत्न शेख र राजा स्वर्गगामी हुआ तो श्री पुञ्ज का अभिषेक हुआ। कुछ दिन राज्य करनेपर उसके एक पुत्री पैदा हुई । यद्यपि वह सर्वांग सुन्दर थी पर मुँह उसका बानरका-सा था । इससे वह विषयविमुख हो कर वैराग्यके साथ रहने लगी और श्री मा ता के नामसे प्रसिद्ध हुई । एक बार उसे अपने पूर्व जन्मका स्मरण हो आया । पिताके सामने उसने उसे निवेदन किया कि- ' मैं पूर्व जन्ममें अर्बुद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy