________________
प्रकरण १९१-१९७ ] कुमारपालादि प्रबन्ध
[ १२९ शोभन देव के पास गई तो उसने कहा कि क्या- वैधव्यसे डर कर सन्धि कराने आई हो ?' तब अपने वीरचूड़ामणि पति वीर ध व ल को उन्नत बनाती हुई वह बोली-'केवल पितृकुलके विनाशकी आशंकासे मैं बारंबार ऐसा कह रही हूं। जब वह वीर घोड़े पर चढ़ेगा तो ऐसा कौन सुभट है जो उसके सामने खड़ा रहेगा?' यह कह कर वह सक्रोध चली गई । लड़ाई छिड़ने पर वी र ध व ल को [ एक सख्त ] प्रहार लग गया और उसकी व्यथासे व्याकुल हो कर वह जमीन पर गिर पड़ा । तब सुभटोंका दिल कुछ हिम्मत हारता हुआ देख, ल व णप्रसाद ने अपनी सेनाको यह कह कर उत्साहित किया कि- 'अरे ! यह तो केवल एक ही सैनिक गिरा है' ऐसा कह कर समस्त शत्रुसेनाका खेलमें ही समूल धंस कर दिया । सत्त्वगुणसे दीप्त वह वीरधवल [ इस प्रकार ] रणरसिकताके वश हो कर इक्कीस बार अपने पिताके आगे गिरा था।
वीरधवलकी मृत्यु । २३१. वह भीम जैसा पराक्रमशाली ( वीरधवल ) पञ्च प्राम की समरभूमिमें घावोंके लगने पर घोड़ेकी पीठ परसे गिरा, पर गर्वसे नहीं।
१९५) वीर ध व ल की आयुके अन्तमें, प्रतितीर्थ (परलोक ) को प्रस्थान करने वालेको दान करनेसे एकका हजार गुणा मिलता है, इस रूढिके अनुसार ते ज पाल ने अपने सारे जन्मका पुण्य दान कर दिया । फिर जब वह स्वामी चल बसा तो उसके सौभाग्यके अतिशयसे १२० सेवकोंने सहगमन किया । तब ते ज पाल ने प्रेतवनमें पहरेदारोंको बिठा कर लोगोंको उस आग्रहसे निषिद्ध किया। २३२. अन्यान्य ऋतु तो आती-जाती रहती हैं पर ये दो ऋतु आ कर फिर नहीं गई। वी र ध व ल
वीरके विना प्रजाओंकी आंखोंमें वर्षा और हृदयमें ग्रीष्म [ सदाके लिये रह गई।] १९६) इसके बाद, मंत्रीने वीर ध व ल के पुत्र वी स ल देव को राजपद पर अभिषिक्त किया।
__ अनुपमाकी मृत्यु । श्री अनुप मा देवी की मृत्युके बाद श्री तेजपाल के हृदयमें जो शोककी गांठ बंध गई वह किसी तरह छूटती नहीं जान कर, वहां पर आये हुए श्री वि ज य से न सूरिसम समर्थ पुरुषके द्वारा वह विपत्ति शान्त कराई गई । कुछ चेतना होने पर लज्जित ते ज पाल से सूरिने कहा- हम इस अवसर पर तुम्हारी लीला देखने आये थे । तो वस्तु पाल ने पूछा कि- वह क्या ? ' इस पर गुरुने कहा- हमने शिशु तेजपाल को ब्याहने के लिये जब ध र णि ग के पाससे उसकी कन्या इस अनुप मा की मंगनी की थी, तब स्थिरपत्र-दानके पश्चात् एकान्तमें उस कन्याकी विरूपताकी बात सुन कर, इसने उसका संबंध भंग होनेके लिये चन्द्रप्रभके मन्दिरके आहातेमें प्रतिष्ठित क्षेत्राधिपतिको आठ द्रस्म का भोग चढाना माना था। और इस समय उसके वियोगमें पागल हो गये हैं । इन दोनों वृत्तान्तों से कौनसी बात सच्ची है ?' इस प्रकार उस पुराने संकेतसे ते ज पाल ने अपने हृदयको दृढ़ किया।
वस्तुपालकी मृत्यु। १९७) फिर दूसरी बार, जब मंत्री वस्तु पाल पूर्णायु हुए तो शत्रुज य की यात्राकी इच्छा की । यह जान कर पुरोहित सोमेश्वर देव वहाँ आया। अमूल्य आसन देने पर भी जब वह नहीं बैठना चाहा तो कारण पूछने
पर बोलाJain Education maypal
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org