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प्रकरण १८१ - १८९ ]
कुमारपालादि प्रबन्ध
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१८३ ) इसके बाद, वह वी र ध व ल क्षत्रिय, जब कुछ कुछ समझने लायक हुआ तो अपनी माताका यह वृत्तान्त जान कर लज्जित हुआ और अपने ही पिताकी सेवामें आ कर रहा । वह जन्मसे ही उदारता, गंभीरता, स्थिरता, नीति, विनय, औचित्य, दया, दान और चतुरता आदि गुणोंसे युक्त था । उसने अपनी शालीनता से किसी कंटक प्रस्त भूमिको अपने अधिकारमें किया और फिर पिताने भी कृपा करके कुछ देश दे दिया । चा ह ड नामक ब्राह्मणको मंत्री बना कर वह राजकारभार चलाने लगा । वहाँ पर, उस समय, आये हुए प्राग्वाट वंशी पत्तन निवासी मंत्री तेजपाल साथ उसकी मित्रता हुई ।
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मंत्रीश्वर वस्तुपाल तेजपालका प्रबन्ध ।
१८४) अब इस प्रकरण में मंत्री तेजपाल के जन्म वृत्तान्तका प्रबंध प्रस्तुत किया जाता है। एक बार, पत्तन में भट्टारक श्री हरिभद्रसूरि का व्याख्यान हो रहा था । वहीं पर मंत्री आश राज बैठा हुआ था । उस समय एक कुमारदेवी नामकी अतीव रूपवती बालविधवा स्त्री वहां पर आई जिसको वे आचार्य बारंबार देखने लगे । इससे आशराजका चित्त उस पर आकर्षित हुआ । व्याख्यानके विसर्जन होनेके अनन्तर मंत्री प्रार्थना पर गुरुने इष्ट देवताके आदेश से कहा कि - ' इसके गर्भ से सूर्य और चंद्रमा के भावी अवतारको देखता हूं, इस लिये इसके सामुद्रिकको बारंबार देख रहा था । ' गुरुसे इस तत्त्वको जान कर मंत्रीने उसका अपहरण करके उसे अपनी प्रेयसी ( पत्नी ) बनाया । क्रमशः उसके पेटसे ज्योतिषेन्द्र ( सूर्य और चंद्र ) जैसे वस्तुपाल और तेजपाल नामक वे दोनों मंत्री अवतीर्ण हुए।
वीरधवलका तेजपालको अपना मंत्री बनाना ।
१८५) किसी समय श्री वीरधवल ने अपने राजकीय व्यापारके भारको ग्रहण करनेके लिये उस तेजपाल की अभ्यर्थना की, तो उसने पहले राजाको उसकी पत्नी के साथ अपने मकान पर भोजनके लिये निमंत्रित किया; और उस समय अनुपमा ने राजपत्नी ज य त ल देवी को कर्पूरके बने हुए अपने दोनों ताडङ्क ( कर्णफूल ) तथा सोनेके बने हुए और बीच बीचमें मोती और मणियोंसे जडे हुए कर्पूरमय, एकावली हारको उपहार रूप में दिया । मंत्री जब उपहार देने लगा तो उसका निषेध करके, वीरधवल अपना राज्यकार्यभार उसके हाथों में समर्पण करता हुआ बोला कि - ' इस समय तुम्हारे पास जो धन है उसे, कुपित होने पर भी, मैं विश्वास पूर्वक कहता हूं कि कभी ग्रहण न करूंगा।' इस प्रकार पत्र पर प्रतिज्ञालेख लिख कर तेजपाल को राज्यव्यापार संबंधी पञ्चाङ्ग प्रसाद प्रदान किया ।
२१३. जो विना करके खजाना बढ़ावे, विना मनुष्य वध किये देश-रक्षा करे और विना युद्ध किये देशवृद्धि करे वही मंत्री बुद्धिमान् कहलाता है ।
मंत्री तेजपालका धर्मभावसम्मुख होना ।
१८६) संपूर्ण नीतिशास्त्र और उपनिषत् में बुद्धिको निविष्ट रखने वाला वह मन्त्री अपने स्वामी की यशोवृद्धि करता हुआ, सूर्योदय कालमें विधिपूर्वक श्री जिनकी पूजा करता, और फिर चंदन और कर्पूरसे गुरुकी पूजा करता । अनन्तर द्वादश आवर्तन करके यथाऽवसर प्रत्याख्यान ले कर रोज गुरुसे एक एक अपूर्व श्लोक पढ़ा करता । राजकार्य करनेके बाद ताजी बनी हुई रसोईका आहार करता । एक बार, मुखाल नामक महोपासक, जो उसका निजी लेखक ( गुमास्ता ) था, एकान्त में पूछने लगा कि - ' स्वामी सबेरे क्या ठंडी रसोई खाते हैं या ताजी ? ' उसके ऐसा पूछने पर वह मंत्री समझा कि यह गँवार है । दो तीन बार उसके ऐसा पूछने पर
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