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________________ १२० ] प्रबन्धचिन्तामणि [चतुर्थ प्रकाश [१४५ ] जिसके काटे हुए म्लेच्छ कंकालके स्थलकी ऊंचाईको देखता हुआ अबु द गिरि अपने पिता प्रालेयगिरि (हिमालय ) की याद भूल जाता है । [१४६ ] विधाताके, उस कल्पद्रुमके अंकुरको शीघ्र ही नष्ट करनेके बाद, उसका छोटा भाई श्री भीम नामक [ नया ] पौधा उगा। १८०) सं० १२३३ से ले कर [ १२९६ तक ] ६३ वर्ष श्री भी म देव ने राज्य किया। [१४७ ] यह भी म राजा, जो राजहंसोंका दमन करने वाला है कदापि उस भी म से न के समान नहीं __ कहा जाता जो बकापकारी ( बकासुरका नाश करने वाला ) था। यह राजा जब राज्य कर रहा था तो सो ह ड नामक माल व देश का राजा गूर्जर देश को विध्वंस करनेके लिये सीमान्त पर आया । तब इसके प्रधानने सामने जा कर इस प्रकार कहा२१२. हे राज-सूर्य ( तुम्हारा ) प्रताप पूर्व [दिशा ] में ही शोभित होता है । पश्चिम दिशामें आने पर तुम्हारा वह प्रताप अस्त हो जाता है । इस विरुद्ध वाणीको सुन कर वह वापस लौट गया । इसके बाद उसने अपने लड़केसे, जिसका नाम श्रीमान् अर्जुन देव था, गूर्ज र देश का भंग कराया । वीरधवलका प्रादुर्भाव । १८१) श्री भी म देव के राज्यकी चिन्ता करने वाला ( राज्य व्यवस्था संभालने वाला ) व्या घ्र पल्ली य नामसे प्रसिद्ध श्रीमान् आ ना क का पुत्र ल व ण प्रसाद चिरकाल तक राज्य करता रहा । साम्राज्यके भारको धारण करने वाला उसका पुत्र हुआ श्री वीर ध व ल । उसकी माता मदन राज्ञीने, अपनी बहनकी मृत्युके बाद यह सुनकर कि-अपने दे व रा ज नामक पट्टकिल ( पटेल ) बहनोई जिसकी बडी भारी आमदनी है लेकिन अब जिसका निभाव नहीं हो रहा है, राजा ल व ण प्रसाद से पूंछ कर अपने शिशुपुत्र वी र ध व ल को साथ ले कर वहाँ गई । उस बहनोईने उसके गुण और आकृतिको स्पृहणीय देख कर, उसे अपनी ही गृहिणी बना लिया । ल व ण प्रसाद ने जो यह वृत्तान्त सुना, तो उसे मार डालनेके लिये रातको उसके घरमें घुसा और एकान्तमें छिप कर जब वह अवसर खोज रहा था, तब वह पटेल भोजन करनेके लिये बैठा और [ पासमें वीरधवलको न देख कर अपनी गृहिणीसे ] यह कहने लगा कि वी र ध व ल के विना मैं नहीं खाऊंगा । इस तरह खूब आग्रहके बाद उसे ले आ कर एक ही थालीमें उसके साथ खाने लगा। तब अकस्मात् , साक्षात् कृतान्तकी तरह सामने उपस्थित उस आदमीको देख भयसे उसका मुंह काला हो गया। पर उस (लवणप्रसाद) ने कहा कि - मत डरो, मैं तुम्हीं को मारने आया था पर इस मेरे वी र धवल लड़के पर, तुम्हारी ऐसी वत्सलता अपनी साक्षात् आँखोंसे देख कर, उस आग्रहको मैंने त्याग दिया है।' ऐसा कह कर उसके द्वारा सत्कृत हो कर जैसे आया था वैसे ही चला गया । १८२) वीर धवल के उस अपर पितासे उत्पन्न, साँ गण, चामुण्ड रा ज आदि राष्ट्रकूटवंशीय भाई हुए जो अपने वीर व्रतसे भुवनतलमें विख्यात हुए। * मालवासे गुजरात पश्चिम दिशामें है इस लिये इस श्लोकमें यह सूचित किया गया है कि मालवाका राजा यदि गुजरातमें आयगा तो उसका तेज नष्ट हो जायगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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