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प्रकरण १७६-१७९ ] कुमारपालादि प्रबन्ध
[ ११९ महाकवि रामचन्द्रकी हत्या। १७७) इसके बाद, सौ प्रबन्धोंका कर्ता [महाकवि ] राम चंद्र उस नीच राजाके द्वारा [ मार डालनेके लिये ] जलती हुई ताम्रपट्टिका पर बिठाया जाने लगा तो उसी अवस्थामें वह यह कहता हुआ कि२०९. जिसने सचराचर पृथ्वीपीठके सिर पर पैर रखा उस सूर्यका अब अस्तगमन होता है तो वह
चिरकालके लिये हो। अपने दाँतोंसे जीभ काट कर मृत्यु प्राप्त हुआ और फिर उस मरे हुएको ही उसने मार डाला ।
इस प्रकार रामचंद्रका प्रबन्ध समाप्त हुआ।
मंत्री आम्रभटका लडते हुए मरना। १७८) इसके बाद, रा ज पिता मह श्री मान् आम्र भ ट के तेजको न सह सकने वाले सामन्तोंने अवसर पा कर उसकी निन्दा करते हुए राजाको उससे प्रणाम करवाने के लिये बाधित किया तो उसने यों कहा कि'देव-बुद्धिसे श्री वीतराग जिनेंद्रको, गुरु-बुद्धिसे श्री हे मा चार्य महर्षिको, और स्वामि-बुद्धिसे श्री कुमार पाल को ही इस जन्ममें मेरा नमस्कार हो सकता है।' उस [वीरके ], जिसके शरीरके सातों धातु जैन धर्मसे वासित थे, ऐसा कहने पर, राजा रुष्ट हुआ और उसने कहा कि-'लड़ने के लिये तैय्यार हो जाओ' । उसकी यह बात सुन कर, मंत्रीने जिनदेवकी पूजा करके [ मनमें ] अनशन व्रत ग्रहण किया और संग्रामदीक्षाका स्वीकार करके अपने योधाओंके साथ मकानसे बाहर निकला । फिर राजाके आदमियोंको भूसेकी तरह उड़ाता हुआ घटिकागृह (राजद्वार ) तक आया और उन पापियोंके संसर्गसे जनित कल्मषको धारातीर्थमें धो कर स्वर्ग लोक सिधार गया । उस समय वहाँ उसको देखनेके लिये आई हुई अप्सरायें 'मैं पहले वरूंगी, मैं पहले 'इस तरह कह रही थीं। २१०. धन पानेके लिये-भाट होना अच्छा है, रंडीबाज होना अच्छा है, वेश्याचार्य होना अच्छा है
और पूरा दगाबाज होना भी अच्छा है, पर दानके समुद्र उ द य न के पुत्र ( आम्र भट) की
मृत्युके बाद चतुर आदमियोंको भूमण्डल पर किसी तरह भी विद्वान् होना अच्छा नहीं। २११. मनुष्य अपने अत्युग्र पुण्य और पापका फल, यहीं पर, तीन वर्षमें, तीन मासमें, तीन पक्षमें या
तीन दिनमें ही प्राप्त कर लेता है। इस पुराणके प्रमाणानुसार उस दुष्ट राजाको [एक दिन ] व य ज ल देव नामक प्रतीहारने छुरा भोंक कर मार डाला । वह धर्मस्थानोंको गिराने वाला पापी कीडे मकोड़ों द्वारा भक्षित हो कर प्रत्यक्ष नरकका अनुभव करके मर गया ।
सं० १२३० से ले कर [ १२३३ तक ] तीन वर्ष इस अज यदे व ने राज्य किया ।
१७९) सं० १२३३ से ले कर [ १२३५ तक] २ वर्ष बाल मूल रा ज ने राज्य किया । इसकी माता नाइ कि देवी ने, जो परमर्दी राजाकी लड़की थी, गोदमें अपने पुत्र-शिशु राजा-को, ले कर 'गाड रार घट्ट' नामक घाट पर म्लेच्छ राजासे युद्ध किया और सौभाग्य वश अकालमें ही आकाशमें बादल हो आनेके कारण उसको दैवी सहायता मिल गई जिससे शत्रु पराजित हो गया। [१४४ ] समर-भूमिमें रेंकते हुए जिस राजाने मानों बाल्य कालकी चपलतासे ही तुरुष्कराजकी
सेनाको छिन्न-भिन्न कर दिया ।
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