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१२२ ] प्रबन्धचिन्तामणि
[ चतुर्य प्रकाश एक बार बड़े क्रोधसे 'पशुपाल ' कह कर उसे अपमानित किया । वह धैर्य धारण करके बोला- ' दोनों से कोई एक तो होगा ही । ( अर्थात् या तो मैं गँवार हूं या मेरी बातको नहीं समझने वाले आप गँवार होंगे) उसकी वचनचातुरीसे चित्तमें चमत्कृत हो कर मंत्रीने कहा - 'विज्ञ ! तुम्हारे उपदेशकी ध्वनिको मैं समझ नहीं सका। अब यथार्थ बात बताओ।' ऐसा आदेश पा कर वह वाग्मी बोला कि- 'जिस रसमयी ताजी रसोईको आप खाते हैं वह पूर्वजन्मके पुण्यका फल है अतएव मैं उसे अत्यन्त शीतल समझता हूं। जो हो, ये तो मैंने गुरुके संदेश वाक्य ही कहे हैं । तत्त्व तो वे ही जानते हैं, अतः वहीं पधारिये ।' उसकी यह बात सुन कर ते ज पा ल मंत्री अपने कुलगुरु भट्टारक श्री वि ज य से न सूरिके पास गया । गुरुसे गृहस्थ धर्मका विधि-विधान पूछा । उन्होंने उ पास क द शा नामक सप्तमाङ्गसे जिनकथित देवपूजा, आवश्यक क्रिया, यतिदान आदि गृहस्थ धर्मका उपदेश दिया। तब उसने विशेषतापूर्वक देवपूजा, जैन मुनियोंको दान आदि देनेवाला धर्मकृत्य आरंभ किया। पूजाके समय चढाये हुए तीन वर्षतकके द्रव्यको निकाला तो ३६ हजार हुआ उससे श्री नेमीनाथका प्रासाद बनवाया।
( यहाँ P प्रतिमें, निम्न लिखित, विशेष श्लोक लिखे हुए पाये जाते हैं-) [१४८ ] मनुष्योंका अपहरण करने वाले समुद्रप्रवासी जनोंका निषेध करके जिसने पृथ्वी पर अपने
धर्मका उदाहरण उपस्थित किया । [१४९ ] छुआ-छूतके निवारणके लिये अलग अलग हदवाली वेदी बना कर जिस ( मंत्री ) ने इस
( स्तंभ तीर्थ ) नगरमें छांछके बेंचनेका विप्लव दूर किया । [१५० ] जिसने, जहाँ पर जो कुछ भी न्यून और जो कुछ भी नष्ट था उसे वहाँ पर पूरा किया।
क्यों कि उत्तम पुरुषोंका जन्म रिक्त स्थानोंको पूरा करनेके लिये ही तो होता है। [ १५१ ] देवताओंके लिये जिसने ऐसे अनेक उपवन दान कर दिये थे जहाँ पर कामदेवको शिवके
नेत्रोंकी अग्निका ताप स्मरण नहीं होता था। [१५२ ] रंभा (१ केला, २ अप्सरा विशेष ) से संभावित, वृषसे निषेवित तथा मनोज्ञ ( १ सुंदर,
२ मनको जाननेवाले ) सुमनों (१ फलों, २ देवताओं) के वर्गसे सुशोभित जिसके
वनोंने स्वर्गके सौन्दर्यको ग्रहण किया था । [१५३ ] हारीत (१ पक्षी विशेष, २ स्मृतिकार ऋषि विशेष ) शुक (१ तोता, २ भागवतका
ऋषि ) चित्र-शिखण्डी ( १ मोर, २ महाभारतका एक वीर) द्वारा संगृहीत जिसके
उद्यान धर्मशास्त्रके सधर्मा हो कर सुशोभित हुए। [१५४ ] इसने सुमनोभाव ( १ सुंदर मनोभाव, २ फूलका भाव ) तथा अतुलनीय श्रीमत्ताको दिखाते
___ हुए, स्वबंधुके वनोंको ( बन्धुकजातिके पुष्पोंके वनोंको ) अपने बन्धुओंकी नाई कर दिया। [१५५ ] जिसके बनाये हुए तालाबोसे पानी ग्रहण करते हुए कासारगण ( असे बैल आदि पशु )
समुद्रमेंसे पानी लेते हुए बादलकी नाई शोभा देते थे। [१५६ ] जिस क्रियानिष्ठ पुण्यात्माने ऐसी कितनी ही बावडियाँ बनवाई जिनके मीठे जलोंने
__ अमृतको भी तिरस्कृत कर दिया। [१५७ ] उसने पानी पीनेके लिये ऐसे प्याऊ बनवाये कि जिनका जल पी कर पथिकोंके मुख तो
तृप्त हो जाते थे किंतु उनकी शोभा देख कर आँखें कभी तृप्त नहीं होती थीं।
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