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________________ २०० ] प्रबन्धचिन्तामणि [ चतुर्थ प्रकाश अनुसार, उन्हें अपना राज्य देने लगा, तो उन्होंने सर्व शास्त्रका विरोधहेतु बतलाते हुए उसका अस्वीकार किया। क्यों कि कहा है कि १८५. हे युधिष्ठिर, जैसे जले हुए बीजका पुनः उद्गम नहीं होता वैसे राज-प्रतिग्रहसे ( राजाके दिये ___ हुए दानसे ) दग्व हुए ब्राह्मणोंका [ फिर ब्राह्मण कुलमें ] पुनर्जन्म नहीं होता । यह पुराणमें कहा गया है । उसी प्रकार जैन शास्त्र भी [ कहते हैं ] - ' गृहस्थके वहाँ भिक्षा मिलती हो तो फिर 'राजपिण्ड' ( राजाके दान ) की इच्छा क्यों करनी चाहिए। इस प्रकार [ प्रभु हे म चन्द्रा चार्य का कहा हुआ सुन कर ] उक्त विषयके ज्ञानसे चित्तमें चमत्कृत हुआ और वह पत्त न पहुँचा । कुमारपालका सोमेश्वर तीर्थके जीर्णोद्धारका प्रारंभ करवाना। १४०) एक बार, राजाने मुनिसे पूछा- 'क्या किसी तरह मेरा भी यशका प्रसार कल्पान्त-स्थायी हो सकता है ?' उसकी इस बातको सुन कर उन्होंने कहा- [यह दो तरहसे हो सकता है - ] या तो विक्रमादित्य के समान संसारको अनृण करनेसे, या सो मे श्वर का काष्ठमय मंदिर, जो समुद्रके पानीकी छाटोंसे शीर्णप्राय हो गया है, उसका उद्धार करनेसे कीर्ति युगान्त तक स्थायी हो सकती है।' इस प्रकार चन्द्रमाकी चाँदनीकी भाँति श्री हे म चंद्र की वाणी सुन कर उल्लसित आनंदके समुद्रसे उस राजाने उसी महर्षिको पिता, गुरु और देवता मानते हुए और विजातीय अन्य ब्राह्मणोंकी निंदा करते हुए, प्रासादके उद्धारके लिये, उसी समय ज्योतिषीसे शुभ लग्न ले कर, पञ्चकुलको वहाँ भेजा और प्रासादके उद्धारका आरंभ कराया । कुमारपालका उदयनसे मंत्री हेमचन्द्राचार्यका जीवनवृत्तान्त पूछना। १४१) एक दूसरी बार, श्री हे म चंद्र के लोकोत्तर गुणोंसे हृत-हृदय हो कर राजाने मंत्री उ द य न से पूछा कि- ' इस प्रकारका यह पुरुष-रत्न, सकल वंशोंके भूषणरूप ऐसे किस वंशमें, समस्त पुण्यके प्रवेशवाले किस देशमें और सब गुणोंके आकर समान किस नगरमें पैदा हुआ है ? ' राजाके इस आदेश पर उस मंत्रीने जन्मसे आरंभ करके उनका पवित्र चरित्र इस प्रकार कह सुनाया- अर्धाष्ट म नामक देशके धुन्धु का नामक नगरमें मो ढ वंश के चा चि ग नामक व्यवहारीकी, सतियोंमें श्रेष्ठ और जैनधर्मकी शासन देवता समान साक्षात् लक्ष्मी जैसी पा हि णि नामक सहधर्मचारिणीके ये पुत्र हैं। चामुण्डा नामक गोत्र देवीके आद्याक्षरके नाम पर चांगदे व इनका नाम रखा गया था। इनकी अवस्था जब आठ वर्षकी थी, उस समय [ इनके गुरु ] श्री दे व चन्द्रा चार्य पत्त न से तीर्थयात्राके लिये प्रस्थान कर धुन्धु क क गांवमें गये । वहाँ मो ढ व स हि का में देवको नमस्कार करने जब गये तो यह लड़का समवयस्क बालकोंके साथ खेलता हुआ, अचानक सिंहासनके पास रखी हुई उन आचार्यकी गद्दी पर जा बैठा । इस बालकके अंग-प्रत्यंगमें संसारसे विलक्षण लक्षणोंको देख कर उन्होंने (दे व चन्द्रा चार्य ने ) कहा - ' यह यदि क्षत्रिय कुलमें पैदा हुआ है तो सार्वभौम चक्रवर्ती होगा, यदि वणिक् या ब्राह्मण कुलमें पैदा हुआ होगा तो महामंत्री होगा और यदि दर्शन (संप्रदाय = धर्ममत ) का स्वीकार करेगा तो युग-प्रधानकी नाई कलि-कालमें भी सत्ययुग ले आयेगा' । आचार्यने यह सोच कर, उसको प्राप्त करनेकी इच्छासे उस नगरके रहने वाले व्यवहारियोंको साथ ले, वे चा चि ग के घर गये । वह उस समय अन्य ग्राममें गया हुआ था। उसकी विवेकवती पत्नीने स्वागत-सत्कारसे उन्हें सन्तुष्ट किया। उनके यह कहने पर कि- श्रीसंघ ( गाँवका मुख्य श्रावक समूह ) तुम्हारे पुत्रको माँगने यहाँ आया है । ' उसने हर्षके आँसू For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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