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________________ ९६ ] प्रबन्धचिन्तामणि [ तृतीय प्रकाश हस्तीके च उलिग नामक महावतने, किसी अपराधमें राजासे फटकार पा कर, क्रोधसे अंकुश - त्याग कर दिया । इसके बाद, अनेक गुणके पात्र ऐसे सा म ल नामक महावतको खूब वस्त्र और धन आदि दे कर उस पद पर नियुक्त किया । उसने ' क ल ह पश्चान न ( युद्धका सिंह) नामक हाथीको सजा करके उसके ऊपर राजाका आसन रखा । ३६ प्रकारके अस्त्रोंको वहां जमा कर, फिर राजाको बैठाया और सब कला - कलापसे पूर्ण ऐसा वह स्वयं भी कलापक पर पैर रख कर हाथी पर चढ़ा । " उस आसन पर बैठ कर चौलुक्य - चक्रवर्ती ( कुमार पाल ) ने देखा, तो मालूम हुआ कि, संग्रामके नायक पुरुषोंसे उठाये जाने पर भी, चा ह ड कुमार के किये हुए भेदके कारण ( फुट जानेसे ), सामन्त लोग उसकी आज्ञाको नहीं मान रहे हैं । इस प्रकार सेनामें कुछ विप्लव देख कर उसने महावतको [ आगे बढनेका ] आदेश किया । सामनेकी सेनामें हाथी परका छत्र देख कर अनुमान किया कि वह सपादलक्ष का राजा [ आ रहा ] है । और यह निश्चय करके कि, सेनाके विघटित ( विमुख ) हो जाने पर मुझे अकेलेहको लडना आवश्यक है, उस महावतको, सामनेके हाथीके पास, अपने हाथीको ले चलनेकी आज्ञा दी । पर उसे भी वैसा न करते देख बोला कि - ' क्या तू भी फूट गया है ? ' इस पर उसने कहा- 'महाराज ! कलह पश्चानन हाथी और सामल नामक महावत ये दोनों युगान्तमें भी फूटने वाले नहीं है; किन्तु सामनेके हाथी पर जो चा ह ड नामक कुमार चढा हुआ है वह ऐसी गंभीर आवाज कर रहा है कि जिसकी हाँकके डरसे हाथी भी भाग छूटते हैं। यह सुन कर राजाने [ अपनी बुद्धिमत्ता से सोच कर ] हाथीके दोनों कानोंको चादरसे बंद कर दिया और फिर शत्रुके हाथीसे जा भिड़ाया। इधर चाह ड़ ने, यह जान कर कि वह च उलिग नामक महावत ही - जिसे उसने पहलेहीसे अपने वशमें कर लिया है - राजाके हाथी पर बैठा है, कुमार पाल को मारने की इच्छासे हाथमें कृपाण लेकर अपने हाथी परसे कूद कर ' कलहपंचानन ' हाथीके कुंभस्थल पर पैर रखा । इतने में महावतने [ बडी चालाकी से ] हाथीको पीछे हटा दिया। इससे वह चाह ड कुमार पृथ्वी पर गिर पड़ा और नीचे खडे हुए पैदल सैनिकों ने उसे पकड़ लिया। इसके बाद चौ लुक्य राज ने श्री आनाक नामक सपादलक्ष देशके राजासे कहा कि - ' हथियार संभालो !' ऐसा कह कर उसके मुख- कमल पर उचित समझ शिलीमुख ( बाण ) फेंकने लगा। (उचित इसलिये कि शिलीमुख भौरेका भी नाम है और भौरोंका कमलकी ओर जाना उचित ही है । ) 6 तुम बड़े प्रधान क्षत्रिय हो न ' - इस प्रकार उपहास के साथ प्रशंसा करते हुए, उसे भुलावेमें डाल कर, जो बाण मारा तो उससे घायल हो कर वह हाथी के कुंभस्थलसे गिर गया । ' जीत लिया, जीत लिया ' कहते हुए जाराने स्वयं सारी सेनामें अपने हाथीको इधर से उधर घूमाया और जो सब सामंत थे उनके घोड़ों पर आक्रमण करके उनको कैद किया । इस प्रकार यह चाहड कुमारका प्रबंध समाप्त हुआ । * कुमारपालका उपकारियोंको सत्कृत करना । १३३ ) तत्पश्चात्, कृतज्ञ - सम्राट् चौलुक्यराजने आलिग कुम्हारको सातसौं गाँववाली विचित्र चित्रकूट पट्टिका ( चित्तोड, मेवाडकी भूमि ) दी। वे अपने वंशके कारण लज्जित हो कर आज भी अपनेको 6 1 सगर ' ( ? ) कहते हैं । जिन्होंने कटे हुए बब्बूलकी डालोंमें छिपा कर राजाकी रक्षा की थी वे अंगरक्षक के पदपर रखे गये । १ हाथी पर चढने के लिये रस्सीका बना हुआ छींकासा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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