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________________ प्रकरण १३१-१३७] कुमारपालादि प्रबन्ध । [ ९७ गायक सोलाककी कलाप्रवीणता। १३४ ) एक बार, सो ला क नामक गायकने अवसर पा कर अपनी गानकलासे राजाको संतुष्ट किया, तो उसने इनाममें मात्र ११६ द्रम्म उसे दिये। इससे [ वह असंतुष्ट हो कर उन द्रम्मोंसे ] सुखभक्षिका (गुड और आटेकी बनी हुई एक मीठाई ) ले कर उसे बालकोंको बाँट दिया । राजाने इस पर कुपित हो कर उसे निर्वासित कर दिया । उसने, वहाँसे फिर विदेशमें जा कर [ किसी एक ] राजाको अपनी अनुपम गीतकलासे प्रसन्न किया और उससे इनाममें दो हाथी पाये । उनको ला कर उसने चौ लु क्य राज को भेंट किये । राजाने [ फिर ] उसका सन्मान किया। १३५) किसी समय, कोई विदेशी गवैया [ राजाकी सभा आ कर ] यह कह कर जोरसे चिल्लाने लगा कि ' मैं लुट गया, लुट गया ।' राजाने पूँछा- ' किससे लुट गया ? ' तो उसने बताया कि मेरी अतुल गीतकलासे एक मृग समीप आ कर खडा रहा। मैंने कौतुक वश उसके गलेमें अपनी सोनेकी कण्ठी पहना दी। फिर भयसे वह भाग गया । इस लिये मैं उस हिरनसे लूटा गया हूँ। तब बादमें, राजाका आदेश पा कर उस सोला नामक गन्धर्वराजने वनमें जा कर अपनी मनोहर गीतविद्याके आकर्षण द्वारा सोनेकी कण्ठीवाले उस मृगको आकर्षित करके ले आ कर राजाको दिखाया। १३६) उसके इस कलाकौशलसे मनमें चकित हो कर, प्रभु श्री हे मा चार्य ने उसकी गीतकलाकी कितनी शक्ति है सो पूछी। उसने सूखे काठको पल्लवित कर देने तक की [ अपनी कलाकी ] अवधि बताई । उसको इस कौतुकके दिखानेका आदेश दिया गया तो, उसने अर्बुद गिरि परसे विरहक नामक वृक्षको उखडवा कर मंगवाया, और उसके शुष्क शाखाखण्डको राजमहलके आँगनमें, कुमारमृत्तिका ( कुंवारी मिट्टी = किसीने नहीं छुई हुई ऐसी कोरी मिट्टी ) से भरे हुए आलवाल (क्यारी) में रख कर अपनी नवप्रशंसित गीतकलासे तत्काल उसे पल्लवोंसे सुशोभित करके दिखा दिया और इस प्रकार राजाके साथ भट्टारक श्री हेम चंद्र सूरि को उसने सन्तुष्ट किया। इस प्रकार बइकार सोलाकका प्रबंध समाप्त हुआ। कौंकणके राजा मल्लिकार्जुनका मंत्री आक्ड द्वारा उच्छेद । १३७) इसके बाद, एक बार, जब चौलुक्य चक्रवर्ती (कु मा र पाल ) ने कौ ङ्क ण दे श के म ल्लि का र्जुन नामक राजाके बंदीके मुँहसे ( उसका ) " रा ज पिता मह” ऐसा बिरुद सुना, तो उससे राजाको इर्ष्या हुई और उसने उस दृष्टिसे सभाकी ओर देखा । राजाके चित्तकी बातको समझ लेने वाले मंत्री आम्बड को हाथ जोड़ते देख कर राजा मनमें चकित हुआ। सभाविसर्जनके अनन्तर हाथ जोड़नेका कारण पूछा । इस पर उसने कहा कि आपका यह आशय समझ कर कि- 'क्या कोई ऐसा सुभट इस सभामें है, जिसे भेज करके, शतरंजके खेलके राजाके समान इस नृपाभास मल्लि का र्जुन को उखाड़ कर फेंक दिया जाय'। मैं आपके आदेशको पूरा कर सकता हूँ; इस लिये मैंने हाथ जोड़े । उसकी इस बातको सुन कर राजाने उसे सेनानायक बना कर और पञ्चाङ्ग पुरस्कार दे कर समस्त सामन्तोंके साथ बिदा किया । वह बिना रुके चलता हुआ कौं क ण देश में पहुँचा और अगाध जलसे भरी क ल बि णी नामक नदीको पार करके सामनेके किनारे पर जा ठहरा । उसे इस प्रकार संग्रामके लिये तैयार होता देख वह राजा म ल्लि कार्जुन [ अकस्मात् ही ] प्रहार करता हुआ उसकी सेनापर टूट पड़ा । इससे वह सेनापति (आम्ब ड) पराजित हो गया । तब फिर वह कृष्णवदन हो कर, काले वस्त्र १ वंशानुक्रमसे जो गवैयाका कार्य करते थे उनको बइकार कहते थे। JainEducation in२५-२६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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