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प्रकरण १२३-१२५ ] पिताके पुण्यार्थ मयणल्लादेवीका सोमेश्वरीकी यात्रा करना । [८९ प्रतिज्ञा पूर्वक बोल उठे कि-'यदि बिल्लीके हाथ तुम्हारी मृत्यु होगी तो मैं भी तुम्हारे ही साथ मरूंगा'। वह तोता ज्यों ही पिंजडेसे उड़ कर उस सोनेके थाल पर आ कर बैठा त्यों ही उस बिल्लीने [लपक कर] भेड़िये जैसे दाँतोंसे उसे मार डाला । राजाने उसे मरा देख कर भोजनका ग्रास छोड़ दिया, और उक्ति-प्रत्युक्ति जानने वाले राजपुरुषोंके [ बहुत कुछ ] निषेध करने पर भी कहा
१६९. राज्य चला जाय, श्री चली जाय, और क्षणभरमें प्राण भी भले ही चले जॉय, किन्तु जो बात
___मैंने स्वयं कही है वह शाश्वती वाणी न जाय ।.
इस प्रकार इष्ट देवताकी भाँति इसी वाणीका जाप करता हुआ, काष्ठकी चिता बनवा कर, उस तोतेको साथ ले, उसमें प्रवेश कर गया । इस वाक्यको सुन कर म य ण ल्ला दे वी शोकसागरमें डूब गई। विद्वज्जनोंने विशेष प्रकारके धर्मोपदेशरूपी हस्तावलंबन दे कर उसका उद्धार किया।
पिताके पुण्यार्थ मयणल्लादेवीका सोमेश्वरकी यात्रा करना। १२३) बादमें, पिताके कल्याणार्थ श्री सो मे श्व र पत्त न की यात्राको वह गई, और वहाँ उस सतीने किसी त्रिवेदी ब्राह्मणको बुला कर उसे जलांजलि देना चाहा। उसने अंजलिमें जल ले कर कहा कि- यदि तीन जन्मका पाप देना मंजूर करो तो मैं यह लूँगा, नहीं तो नहीं।' उसकी इस बातसे अत्यन्त सन्तुष्ट हो कर, हाथी, घोड़ा, सोना आदिके दानके साथ, उसे पापघटका दान किया। उसने वह सब अन्य ब्राह्मणोंको दे दिया । देवीके यह पूछने पर कि 'ऐसा क्यों किया?'; बोला कि-' पूर्व जन्मकी पुण्य-वृद्धिके कारण तो आप इस जन्ममें राजरानी और राजमाता हुई हैं। और फिर इन लोकोत्तर दानोंके पुण्यसे भविष्य जन्म भी श्रेयस्कर ही होगा। यही सोच कर मैंने तीन जन्मका पाप ग्रहण किया है । आपने जो इस पापघटके दानका उपक्रम किया है, इसे तो कोई अधम ब्राह्मण ले कर खुदको और आपको भी भव-सागरमें डूबो दे। मैंने तो पहले ही सब धनका त्याग कर दिया है और फिर इस धनको ले कर भी दान कर दिया है, इस लिये जो मैंने त्याग किया उससे आठ गुना अधिक श्रेयः संग्रह किया है।
इस प्रकार यह पापघटका प्रबंध समाप्त हुआ।
सान्तू मंत्रीकी बुद्धिमत्ताका एक प्रसंग । १२४) किसी समय, मा ल व म ण्ड ल से विग्रह करके स्वदेशको लौटते समय सिद्ध राज को मालूम हुआ कि [ गुजरात और मालवेके मध्यमें बसनेवाले ] अनुपम बलशाली भिल्लोंने उसका रास्ता घेर लिया है। सान्तू मंत्री को [पत्त न में ] इसके समाचार मिले, तो उसने प्रति प्राम और प्रति नगरसे घोड़े इकट्ठे किये, और प्रत्येक बैलको भी पलानसे सज्ज करके बडा भारी दलबल इकट्ठा किया । फिर उस दलके बलसे भिल्लोंको त्रासित कर सिद्ध रा ज को सुखपूर्वक स्वदेशमें ले आया।
इस प्रकार सान्तू मंत्रीकी बुद्धिका यह प्रबंध समाप्त हुआ।
सिद्धराजके एक सेवकके भाग्यका वृत्तांत । १२५) किसी एक रातको दो बुद्धिमान भृत्य श्री सिद्ध राज के पैर दबा रहे थे। उनमेंसे एकने, राजाको नींदके कारण आँखें बंद किया हुआ समझ कर, उसकी प्रशंसा करते कहा कि-'महाराज सिद्ध रा ज कृपा और कोपमें [ एकसे ] समर्थ. सेवकों के लिये कल्पवृक्ष और राजोचित सभी गुणोंके आलय हैं। दूसरेने, राजाके इस
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