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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा *水水 が 水氷水************* ******** (ध्वजा) हाथी, घोड़ा और मुख्यद्वार आदि की पूजा करते हैं। व्यापारी लोग दिवाली के अवसर पर कलम, दवात, बही, सुपारी के बनाये हुए गणेश और द्रव्य आदि की पूजा करते हैं, उसी प्रकार सूर्याभ देव ने भी अपने राज्याभिषेक के समय उन प्रतिमाओं और नाग, भूत, यक्ष प्रतिमाओं तथा द्वार, तोरण, नागदन्ता, बावड़ी आदि अनेक वस्तुओं की पूजा की है, इसी से स्पष्ट हो जाता है कि यह क्रिया धार्मिक नहीं है। यदि सूर्याभ के इस कृत्य को धार्मिक माना जाय तो बहुत सी बाधायें उत्पन्न होती हैं, जिसमें मुख्य यह है कि यदि मूर्ति पूजा में धर्म है तो बताइये द्वार, शाखा, तोरण, नागदन्ता, और बावड़ी आदि की पूजा में भी आपको धर्म मानना चाहिये भूत नागादि की मूर्तियों की पूजा को भी धर्म में सम्मिलित करना चाहिए,
और तो और इस प्रकार मानने पर धर्म का महत्त्व कुछ भी नहीं रहेगा, बल्कि संसार के भैरव, भवानी, पीर, भूत यक्षादि की मूर्तियों का पूजना भी धर्म माना जायगा। इस प्रकार इतना अन्धेर खाता चलेगा कि मिथ्यात्व और सम्यक्त्व में कुछ भी भेद नहीं रहेगा। .. ___यदि यह कहा जाय कि सूर्याभ देव ने जैसे मूर्ति की पूजा की है, वैसे अन्य वस्तुओं की पूजा नहीं की, अतएव अन्य मूर्तियों और वस्तुओं की पूजा में धर्म नहीं माना जा सकता तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि सूर्याभ ने और वस्तुओं की भी पानी, पुष्प, पुष्पमालायें और धूप से पूजा की है, इस बात को आपके टीकाकार भी स्वीकार करते हैं, देखिये -
"चैत्यवृक्षस्य द्वार वदर्चनिकां करोति xxx पूर्वस्य मुखमण्डपस्य दक्षिण द्वारे पश्चिमस्तम्भ पंत्तयोत्तर पूर्वद्वारेषु क्रमेणोक्तरूपां पूजा विधाय।"
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