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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव **************************************
इस प्रकार सभी वस्तुओं की पूजा की जाना सिद्ध है। यदि आप उसे पूजा नहीं माने तो बताइये, सूर्याभ को उन वस्तुओं को पानी की धारा देने, चन्दन से अर्चने, फूल चढ़ाने, मालायें पहिनाने और धूप देने की क्या जरूरत थी? कहना नहीं होगा कि यह सब पूजा ही थी, अतएव इन वस्तुओं की पूजा में भी आपको धर्म मानना चाहिये। ___महानुभाव! सूर्याभ की यह सब क्रियायें राज्याभिषेक के समय वहाँ की परम्परानुसार जीत-व्यवहार को अदा करने की थी इससे धर्म मान लेना या धार्मिकता का रङ्ग चढ़ाना किसी प्रकार उचित नहीं है। ... श्री ज्ञानसुन्दरजी ने सूर्याभ की इस प्रतिमा पूजन को धार्मिक करणी बताने के लिए कुछ युक्तियें दी हैं। यहाँ हम संक्षिप्त में वे युक्तियाँ भी बता देते हैं।
१. वे प्रतिमायें पद्मासन से ध्यानस्थ हैं इसलिए तीर्थंकर - प्रतिमायें हैं। २. सूर्याभ ने "नमुत्थुणं" के पाठ से उनकी स्तुति की
अतएव ये मूर्तियें तीर्थंकर की थी। ३. इस पूजा का फल शास्त्रकार ने साक्षात् तीर्थंकर वन्दन
संयम पालन के फल के बराबर हित, सुख यावत् मोक्ष
तक कहा है। ४. जीताचार की करणी में भगवान् ने आज्ञा दी है। ५. सूर्याभ सम्यग्दृष्टि और भव्य है, अतएव उसकी मूर्ति
पूजा उपादेय है। उक्त पाँचों युक्तियों पर निम्न विचार किया जाता है।
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