________________
३८
शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव *********************安**********************
इस प्रकार सुन्दर मित्र ने बिना विचारे मनमें जो आया सो लिख डाला है किन्तु वास्तव में यह अज्ञानता प्रदर्शन ही है, क्योंकि सूत्र में स्पष्ट रूप से गोशीर्ष चन्दन का लेप करने के बाद ही वस्त्र पहिनाना लिखा है, सुन्दर मित्र "नियंसेई" शब्द का अर्थ चढ़ाना करते हैं पर स्वयं टीकाकार श्री मलयगिरि ने इस शब्द का अर्थ “परिधापयति" करके परिधान करवाना-पहिनाना-किया है और इन्हीं मूर्तिपूजक समाज के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वान् पं० बेचरदासजी भाषांतर करते हुए उक्त विषय में लिखते हैं कि - "देव दूष्य युगल पहेराव्यां"
(रायपसेणइय सुत्त नो सार पृ० ६३) बस, हो गया निर्णय? यदि और भी अधिक स्पष्टीकरण चाहिए तो लीजिये, हम यह सिद्ध करते हैं कि गोशीर्ष चन्दन का लेप करने के बाद वस्त्र पहिनाना ही शास्त्र सम्मत है, देखिये -
१. इसी रायपसेणइय सुत्त में सूर्याभदेव के वस्त्र परिधानाधिकार में निम्न मूल पाठ है -
"तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणिय परिसोववन्नंगा अलंकारिय भंडं उवट्ठवेंति, तएणं से सूरियाभेदेव तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईएगायाइंलूहेतिलूहित्ता सरसेणंगोसीस चंदणेणं गायाइंअणुलिंपतिअणुलिंपित्तानासानीसास वायबोज्झं चक्खुहरं वन्न फरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियन्ति कम्मं आगास फालिय समप्पभं दिव्वं देवदूस जुयलं नियंसेति'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org