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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा इसलिये “अरुण नेत्र' अर्थात् लालरेखायुक्त सराग भाव को बताने वाली ये प्रतिमायें तीर्थंकर की प्रतिमा नहीं मानी जा सकती। (इ) वस्त्र-परिधान जैनागमों में तीर्थंकर को वस्त्र रहित बतलाया है और सभी जैनी यह मानते हैं कि तीर्थंकर वस्त्र धारण नहीं करते। हाँ, दीक्षित होते समय इन्द्र प्रभु के कन्धे पर एक देवदूष्य वस्त्र रखता है। जो वैसा ही पड़ा रहता है, प्रभु उसे सम्हाल कर पहिनते नहीं, या गिर जाने पर उठाते भी नहीं, इस प्रकार सभी तीर्थंकरों के वस्त्र रहित रहने का कल्प है। जब तीर्थंकर प्रभु वस्त्र पहिनते ही नहीं, नग्न ही रहते हैं, और वस्त्र पहिनने वाले तीर्थंकर नहीं माने जाते, तब वस्त्र पहिनने वाली मूर्ति तीर्थंकर की किस तरह मानी जा सकती है। सूत्र "रायपसेणइय" और "जीवाभिगम' में स्पष्ट उल्लेख है कि - "देवदूसजुयलाई नियंसेई" अर्थात् “देव दूष्य वस्त्र पहिनाये" फिर ऐसी प्रतिमा तीर्थंकर की कैसे हो सकती है? इसके समाधान में "सुन्दर" मित्र कहते हैं कि - "प्रतिमा को वस्त्र पहिनाये नहीं, किन्तु चढ़ाये हैं। और साथ ही स्व० पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज पर आक्षेप भी कर बैठे हैं, देखिये सुन्दर मित्र का लेख - “सूत्र में वस्त्र चढ़ाना लिखा है पर ऋषिजी ने वस्त्र पहिनाये लिख दिया है पर यह लिखते समय इतना ही विचार नहीं किया कि गोशीर्षचन्दन का लेपन कर वस्त्र कैसे पहिनाये? ऐसा तो एक विवेकशून्य मनुष्य भी नहीं करते हैं तो वे महाविवेकी देव क्यों करेंगे। वास्तव में वस्त्र चढ़ाये अर्थात् अर्पण किये। जैसे आज भी पूजा . में वस्त्र अर्पण किया जाता है जिसको अङ्ग लुहने कहते हैं।" (पृ० ५६ का फुट नोट) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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