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शाश्वती प्रतिमाएं और सूर्याभदेव **********************************************
(अ) मूर्तियों का शाश्वत पन अनन्त चौबीसी बीत गई, आज तक जितने भी तीर्थकर हुए हैं, उन सबका जन्म हुआ और निर्वाण भी हुआ, भविष्य में भी इसी प्रकार होगा, लाखों पूर्वो तक विद्यमान रहने पर भी जन्म और निर्वाण होता ही है, आज तक कोई शाश्वत नहीं रहा। शाश्वत वस्तु सदा, सर्वदा विद्यमान रहती है, उसकी न तो उत्पत्ति होती है और न नाश। तीर्थंकर तो अमुक नाम से जन्म लेते हैं, व निर्वाण को भी प्राप्त होते हैं, अतएव वे शाश्वत नहीं हो सकते। जब तीर्थंकर नाम रूप से शाश्वत नहीं होते, तब उनकी मूर्ति कैसे शाश्वत हो सकती है? सिद्ध हुआ कि देवलोक की चार नामवाली मूर्तिये शाश्वत होने से वे तीर्थंकर की नहीं है।
(आ) अरुण-नेत्र आँखों की रक्तता या लाल रेखायें सरागियों के होती है, क्योंकि ये संसारी होकर काम-क्रोध युक्त होते हैं, यह तो सभी जानते हैं कि क्रोधी की आँखें लाल होती है, इधर "रायपसेणइय' और "जीवाभिगम" दोनों सूत्रों में “अंतो लोहियक्खपडिसेगाओ" कहा है जिसका अर्थ "लोहिताक्ष (लालरङ्ग की) रत्नमय आँखों की रेखायें हैं" ऐसा होता है और वीतरागी तीर्थंकर प्रभु के श्वेत नेत्र होते हैं, क्योंकि वे निर्वीकारी हैं, उववाई और रायपसेणइय इन दोनों सूत्रों में तीर्थंकर प्रभु महावीर के शरीर का वर्णन है, जिसमें उनकी आँखों के विषय में कोयासिय धवल पत्तलच्छे' अर्थात् उनकी “विकसित श्वेत कमल के समान श्वेत और पतली आँखें" लिखा है। इस प्रकार नेत्र सम्बन्धी विरुद्धता हार्दिक भावों की विरुद्धता प्रकट करती है,
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