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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २५ 卒卒*****客家多多学多多学****字字字********字多多多多*** चोरियाँ होकर कितनी हानि होती है। चोर धातु की मूर्ति को ही उठा ले जाते हैं। अतएव सुन्दरजी का कथन निःसंदेह मिथ्या हैं। मिस्टर ज्ञानसुन्दरजी! आपने अपने उक्त शब्दों में "केवल" और “ही'' दो शब्द लगाकर अपनी बात को खूब दृढ़ किया कि बस “संसार भर में यदि सदाचार, शांति, सुख और समृद्धि का मूल कारण यदि कोई है तो एक मात्र मूर्ति-पूजा, अन्य कुछ नहीं। (हँसी आती है सुंदरजी की बालबुद्धि पर। आप मूर्ति के रङ्ग में ऐसे रङ्ग गये कि जिसके कारण अन्य सभी कल्याणकारी मार्गों पर ताला ही ठोक दिया। बिना प्रमाण या युक्ति के ऐसे मिथ्या अतिशयोक्ति भरे वाक्य लिख डालना सचमुच बाल चेष्टा ही है। यदि सुंदरजी मूर्ति-पूजा की भयङ्करता पर विचार करते तो उन्हें स्पष्ट दिखाई देता कि मानव जाति को धर्म के नाम पर पाखंड और अन्धविश्वास में ढकेलने के मुख्य कारणों में मूर्ति-पूजा भी है वह भी सबमें बढ़कर है। साधुता की घातक और चैत्यवाद आदि से शिथिलता की वर्द्धक भी यही सिद्ध हुई है। मूर्ति-पूजा के संस्कारों ने ही जैन मन्दिरों में अन्य भैरवादि की मूर्तियों को स्थान दिया है। और इसी के सहारे अन्य अधर्मी * लोग जैन समाज को लुटते हैं। राज्य + की ओर से भी जैन समाज चूसी जा रही है। आपसी xx . * केशरिया तीर्थ में पंडे लोग जैन समाज का पैसा हड़प कर लेते हैं। + पालिताना स्टेट प्रतिवर्ष ६००००) रूपये शत्रुञ्जय पहाड़ के कर के वसूल करती है, आबू पहाड़ पर भी टेक्स दिये बिना मूर्ति तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। _xx दिगम्बर श्वेताम्बर के आपसी झगड़ों में लाखों का पानी हुआ,, और हो रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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