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________________ - साक्षात् और मूर्ति में अन्तर ********************************************** झगड़े और कलह कंकाश भी इसी के कारण होता है। व्यर्थ x के खर्चे भी यही करवाती है। इसलिए यदि आत्मकल्याण के इच्छुक सदाचार शान्ति और समृद्धि चाहते हैं तो उन्हें मूर्ति-पूजा से सर्वथा दूर रहना चाहिये। वास्तव में मूर्ति-पूजा सदाचार शान्ति सुख एवं समृद्धि की नाशक ही सिद्ध हुई है। सुंदर बंधु को उल्टा कथन करते कुछ सत्य का भी ध्यान रखना चाहिये। साक्षात् और मूर्ति में अन्तर श्री सुन्दरजी आगे (पृ० ४ में) लिखते हैं कि - “आप अपने मन-मन्दिर में निराकार ईश्वर की कल्पना करेंगे तो वह कल्पना भी साकारही होगी।जैसे कि तीर्थंकर अष्ट महा प्रतिहार विभूषित केवलज्ञानादि संयुक्त समवसरण में विराजकरदेशना देरहे हैं इत्यादि। अब आप स्वयं सोचिये कि-मन्दिर या मूर्ति मानने वाले आप की इस कल्पना से विशेष क्या करते हैं?" सुन्दर मित्र की उक्त वाक् छलना से बेचारे भोले लोग तो भ्रम में पड़ जाते हैं, किन्तु जिनमें थोड़ी भी विचार शक्ति है वह अवश्य इसके भेद को अच्छी तरह नाप सकते हैं। आश्चर्य तो यह है कि खुद सुंदरजी इतने वर्ष साधुमार्गी समाज में रहकर भी हमारे सिद्धांत से अनभिज्ञ रहे। क्योंकि साकार निराकार - प्रतिष्ठा, संघ निकालना, आदि कार्यों में लाखों रुपये व्यर्थ बरबाद होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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