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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा *********** ********* होती है। उपकरणों का उपयोग प्रभु की आज्ञानुसार है, किन्तु मूर्ति पूजा आप्त आज्ञा रहित और हिंसा युक्त होने से प्रभु आज्ञा की विरोधिनी है। उपकरणों के लिए किसी प्रकार की लड़ाई नहीं होती, किन्तु मूर्ति के लिए ऐसे-ऐसे झगड़े हुए, जिसमें समाज छिन्न भिन्न हो गये। लाखों करोड़ों का पानी हुआ, और हो रहा है। यहाँ तक कि केशरिया तीर्थ में तो पूजक महानुभावों ने अपने ही भाइयों के प्राण हरण कर लिये । उपकरणों के उपयोग से इन्द्रियों का विषय पोषण नहीं होता, किन्तु मूर्त्ति पूजा से पांचों इन्द्रियों का स्पष्ट विषय पोषण होता है । गान, तान, वादिंत्र, दीपराशि, नृत्य, सुगन्धित पुष्प, फल, इत्र, केशर, नैवेद्य, स्नान, मर्दन आदि कार्यों में पांचों इन्द्रियों का विषय पोषण खुल्लम-खुल्ला होता है । यदि स्पष्ट कहा जाय तो जिस जैनधर्म का सिद्धान्त पुद्गल त्याग है, मूर्ति - पूजा से उल्टा पुद्गलासक्त - पुद्गलों में मस्त रहना प्रतीत होता है। जो श्रृङ्गार सामग्री विलास भवनों तथा नाट्यशालाओं में होती है, प्रायः उसी प्रकार की सामग्री आज मूर्ति के महालयों-मन्दिरों में पाई जाती है। ऐसे स्थानों में गया हुआ मनुष्य पुद्गलों में मस्त होकर ही लौटता है। कोई-कोई तो काम वासना में गोते लगाते पाये जाते हैं । समाचार पत्रों में मन्दिरों को व्यभिचार के अड्डे कह कर पुकारा जाता है। दक्षिण की देवदासी प्रथा तो सर्व प्रसिद्ध है। जैन मन्दिरों में भी काम ३. जिनकल्पी के रजोहरण और मुखवस्त्रिका ये दो ही उपकरण माने गये हैं फिर इनके लिए मूर्ति कहां गई ? ४. जिस प्रकार रजोहरण मुखवस्त्रिका सदा साथ रक्खे जाते हैं। रजोहरण अधिक दूर रखने पर प्रायश्चित्त योग्य है । इस प्रकार मूर्ति तो सदैव साथ नहीं रहती। ऐसी दशा में धर्मोपकरणों से इसकी समानता कैसे हो सकती है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Tan
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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