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२७४ मूर्ति पूजा विषयक ग्रन्थों की अप्रामाणिकता *********************於***********************中 क्योंकि शक्रेन्द्र यहाँ-शत्रुजय पर्वत पर आता है वह इसे राज्य के अधिकार में कब रहने देगा? पहले भी वर्षों के लगे हुए ताले शक्रेन्द्र ने ही तो खुलाये थे? हाँ पर कल मोजीराम भाई कहते थे कि ये साले चोर तो शक्रेन्द्र से भी बढ़कर निकले, जो शत्रुजय के मन्दिरों में से मूर्तियों-नहीं, नहीं, भगवानों की बहुमूल्य रल जड़ित आँखें ही निकाल ले गये। भावनगर का मूर्ति पूजक “जैन” पत्र (अगस्त १९३६) लिखता था कि अभी तक चोरों का पता भी नहीं लगा। इन दिनों में शायद शक्रेन्द्र का दौरा शत्रुजय पर नहीं हुआ होगा? क्या किसी ढूँढक देवने तो इन्द्र को नहीं बहका दिया? सूरिवर्यों को इसके लिए शीघ्र सावधान होकर प्रयत्न करना चाहिए।)
उक्त पर्वतराज के विषय में आगमोद्धारक आचार्य देव श्री सागरानंद सूरिजी के भी सिद्धात देख लीजिये -
“श्री सिद्धाचल गिरीराज ऊपर मन्दिर अने मूर्तिओ हजारो अने लाखोनी संख्या मां छे, छतांए गिरिराज नीज स्तुति गिरिराज द्वारा करवामां आवे छे ते विवेकिओ ने ओछु विचारवा लायक न थी'....."भाव तीर्थंकर करतां पण सिद्धाचल रूपी क्षेत्र नो प्रभाव भगवानना श्री मुखे केटलो बधो महत्तर गवायो छे.......आ सिद्धाचल रूपी क्षेत्र एटलुं बधुं प्रभावशाली छे के आत्मा ने पवित्र थवाना कारण भूत जे वीर्य उल्लासो ते छणे छणे पोतेज उत्पन्न करे छे.......खुद स्थापना तीर्थंकर एटले भगवान् नी प्रतिमा थी तोशु परन्तु खुद भाव अरिहन्त के जे केवली अवस्था मां रहेला तीर्थंकर महाराजा होय छे तेमना करता पण आ गिरिराज अत्यन्त प्रभावशाली छे, आ वात हरेक जैनाए ध्यान मां लेवा जेवी छे।"
__(सिद्धचक्र वर्ष ६ अं० १०-११ मार्च १९३८ के जिनेश्वर महाराजनी मूर्ति करता गिरिराज नी अधिकता केम? शीर्षक से
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