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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ************** 'धूपो दहति पापानि, दीपो मृत्युर्विनाशकः । नैवेद्यं विपुलं राज्यं, सिद्धिदात्री प्रदक्षिणा । " (जैन तत्त्वादर्श पृ० ४०८ ) तथा जो पुरुष स्नान करके करे जिसका स्नान भी अच्छा है। भगवान् की तथा साधु की पूजा ( जैन तत्त्वादर्श पृ० ४०० ) ( अच्छा है ? वाह रे जैन श्रमणाचार्य ? और साधुकी पूजा स्नान करके कैसे करे ? क्या, जल, फूल, धूप, चन्दनादि से ?) इसके सिवाय कदलि के पेड़ को कटाकर उसके खंभे बनवाना उससे बंगला तैयार करवाना, फूलों का घर बनाना आदि कई तरह के विधान मूर्ति पूजा के उद्देश्य से किये गये हैं । (देखो - लोकाशाह मत समर्थन) यहाँ अधिक नहीं लिखकर अब कुछ नमूने शत्रुंजय पहाड़ की मनः कल्पित महिमा के दिखाये जाते हैं। - " शक्रेन्द्रे श्री कलिकाचार्य महाराजनी आगल कह्युं हतुं के श्री महाविदेह क्षेत्रमां पण सम्यग्दृष्टि जीवों आ श्री शत्रुंजय नुं स्मरण करे छे। " ( जैन सत्य प्रकाश वर्ष ३ अं० १० - ११ मे - जून लेखक श्री विजयपद्म सूरिजी म० पृ० ३६६ ) " 'श्री नेमीनाथ प्रभु ना कहेवा प्रमाणे कृष्ण वासुदेव अहीं रहीने आठ उपवास करी कपर्दि यक्षनो आराधना करी, जे थी यक्षाधिराजे पर्वत नी गुफानी अदर रहेली शक्रेन्द्र थी पूजायेली त्रण 'प्रतिमाओ बतावी ते गुप्तराखी, संभलाय छे के हाल पण ते स्थले शक्रेन्द्र घणीवार आवे छे।" (जैन सत्य प्रकाश वर्ष ३ अं० १० - ११ मे - जून लेखक श्री विजयपद्म सूरिजी म० पृ० ३७१) ( तब तो पालीताना स्टेट को अब पर्वत से हाथ धोना पड़ेगा Jain Education International २७३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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