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[30] ******************* **************** युद्ध मां जती वखते पण होय एम ज्या ज्यां स्नान छे त्यां बलिकर्म होयज, एटले दरेक ठेकाणे जिनेश्वर देवनी प्रतिमाजीनी पूजा न होय एतो सहेजे समजी शकाय एम छे, छतां बलिकर्म एटले प्रतिमा पूजन कथा शास्त्र ना आधारे समजाववा मां आवे छे, पूजक भाइओ समजावशे?
श्री ज्ञाताजी सूत्रना प्रथम अध्ययन मां पाठ छे के -
"तत्तेणं सुमिणपाठगा सेणियस्सरन्नो कोडंबिय पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठ तुट्ठा जाव हियया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता।"
अर्थात् - त्यार पछी ते स्वप्नपाठको श्रेणिक राजना कोटुम्बिक ना बोलाव्याथी हष्ट तुष्ट यावत् आनन्दित हृदय वाला थया, न्हाया बलिकर्म कर्यु यावत् कौतुक मङ्गल प्रायश्चित्त कर्यु अर्थात् पाछली अवस्था टाली।
एज अध्ययन मां मेघकुमार दीक्षा लेवा तैयार थया त्यारे हजामने बोलावे छे, ते हजाम पण स्नान बलिकर्म करीने आवे छे एम दरेक ठेकाणे स्नाननी साथे बलिकर्म कहेल छे, एटले स्नान होय त्यां बलिकर्म होयज, अने ते बकिलर्म पाठनी पाछल “पायच्छित्ता" पाठ पण होयज, एथी बलिकर्म एटले स्नाननी विशेष शुद्धिनी क्रिया-शरीरना प्रत्येक अङ्गोपांगनी कालजी पूर्वकनी शुद्धि केटलाक स्नान करे छे त्यारे मात्र शरीर पर पाणी ढोले, पण प्रत्येक अङ्गोपांगनी शुद्धि तरफ बेदरकार रहे तो भविष्य मां स्नान करवा छतां रहेली अशुद्धिना कारणे घणा रोगो उत्पन्न थाय छे, अने जो विधि पूर्वक स्नान थायतो घणा रोगो उत्पन्न थता अटकी जाय छे ए अशुद्धि टालवा माटेनी खास कालजी एज बलिकर्म, कारण के एना पछीनो जे पाठ "पायच्छित्ता"
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