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________________ [31] *** **** ते सूचवे छे के स्नान अने बलिकर्म करीने पाछली एटले स्नान कर्या पलानी जे जे शारीरिक अशुद्धि-दोष हता ते सर्व ने दूर कर्या । हवे जो बलिकर्म नो अर्थ देव पूजा करवामां आवे तो ते देवपूजानो अशुद्धिमां समावेश थाय छे, कारण के बलिकर्म करवुं ए अशुद्धि शारीरिक अशुद्धि टालवानुं स्नान साधेनुं एक कार्य छे, एटले ए पण त्याज्य छे अने जो देव पूजा त्याज्य होय तो पछी तेनी महत्ता कांई छेजनहिं अर्थात् बलिकर्म नो अर्थ शरीर शुद्धिनी कालजी पूर्वकनी एक क्रिया सिवाय शुं होइ शके ? धर्म प्राण लोंकाशाहना वंशजो धर्मप्राण लोकाशाहना वंशज कोई यतिए मूर्तिपूजानी महत्ता गाई होय के मूर्तिपूजा करी होय एथी मूर्ति पूजा जो सिद्ध थती होय तो वर्तमान काले कोई कोई श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधुजी रेलमा मुसाफिरी करे छे एटलुंज नहिं, पण रेलमा मुसाफरी करवानुं ते प्रतिपादन करे छे, दरिया मार्गे जावामा स्टीमरमा बेसे छे अने तेम बेसवुं ए धर्म विरुद्ध नथी पण धर्म प्रचारनुं एक कल्याण कारक अङ्ग छे एम परूपे छे, एटले हवे रेल विहारी साधुजी ने आदर्श मानी तेनुं अनुकरण सर्व आचार्यों अने सर्व साधुजी अने साध्वीजीए जरूर करवुंज जोइए ने? अने जो रेल्वे मुसाफरी करवामां आवे तो गृहस्थो परनों घणो आर्थिक बोजो ओछो थाय तेम छे एटले जैन साधु ने वर्जित एवा रेलविहार ने माननाराओ नुं अनुकरण साधु साध्वीजी करे तो मुख्यताए बे लाभ तो थाय तेम छे । (१) कोई शरीर ना कारणे के वृद्धावस्था ने कारणे लांबो विहार करी शकता नथी तेओने डोली मां बेशी ने मनुष्य कांधा पर चढ़ीनेमनुष्यों ने तकलीफ आपीने जे गामो गाम विहार करवो पड़े छे अने एने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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