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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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"चित्तम्-अन्त-करणम् तस्स भावः कर्म वा चैत्यं भवति।" (यहाँ चित्त के भाव कर्म (ज्ञान) को चैत्य कहा)
७. स्थानांग की टीका में - "चित्तम् आह्लादयति तत् चैत्यं" (जिससे चित्त को प्रसन्नता हो वो चैत्य)
८. उववाई सूत्र में पूर्णभद्र यक्ष के अधिकार में यक्ष की योग्यता बताते हुए निम्न अर्थ किया है।
"चैत्यं इष्ट देवता प्रतिमा"
(इस स्थल पर अर्हत प्रतिमा के सिवाय यक्ष प्रतिमा को इष्ट देवता प्रतिमा चैत्य शब्द से कहा है)
६. बृहद्कल्प भाष्य के छठे उद्देशे में - ‘आहा आधाय कम्मे' गाथा की व्याख्या में श्री क्षेमकीर्ति सूरि ने "चैत्योद्देशिकस्यसाधून उद्देश्यकृतस्यादि'' लिखकर साधु अर्थ किया है।
१०. अनुत्तरोपपातिकदशा और विपाक-सूत्र का हिन्दी अनुवाद करने वाले वीर पुत्र श्री आनंदसागर जी ने अनेक स्थानों पर चैत्य शब्द का अर्थ "उपवन' किया है जिसे बगीचा भी कहते हैं।
११. काललोक प्रकाश भा० ३ में - तीर्थंकर को जिस वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ उस वृक्ष को सूत्र में चैत्य वृक्ष कहा है, उस चैत्य वृक्ष को "ज्ञानोत्पत्ति वृक्षाः' लिखकर चैत्य अर्थ "ज्ञान" मान्य किया है।
१२. शत्रुजय माहात्म्य भाषान्तर (जैन धर्म प्रसारक सभा) पृ० ४६ में -
"उद्यान नी अंदर एक अंबादेवी नुं चैत्य हतुं।" (इसमें अम्बिका मन्दिर को भी चैत्य कहा है।)
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