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________________ २४८ चैत्य शब्द के अर्थ **************次*******************多次求求求 १३. मूर्ति मण्डन प्रश्नोत्तर पृ० २८२ में प्रश्न व्याकरण सूत्र के प्रथम आस्रवद्वार के चैत्य शब्द पर लेखक व्याख्या करते हैं “कोना चैत्य तो के कसाई, बाघरी, माछला पकड़नार महाकुर कर्मोना करनार इत्यादिक घणा म्लेच्छ जाति ते सर्वे यवन लोक देवल, प्रतिमा ने वास्ते जीवो ने हणे ते आस्रव द्वार छ।" । .........ते ठेकाणे आश्रव द्वारमां तो म्लेच्छो ना चैत्य “मसिदो" ने गणवेल छ। (१४) मूर्ति पूजक समाज के प्रतिभाशाली विद्वान पं० बेचरदासजी दोसी ने “जैन साहित्य मां विकार थवाथी थयेली हानी" नामक पुस्तक के "चैत्यवाद' शीर्षक स्तंभ से इस शब्द का अर्थ मुख्यतः “स्मारक चिह्न' कर के मूर्ति और मन्दिर अर्थ को प्राचीन नहीं मानकर नूतन ही माना है। इस प्रकार मूर्ति पूजक समाज के विद्वान् भी चैत्य शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ करते हैं। इन्हीं लोगों के किए हुए भिन्न अर्थों से ही पाठक समझ सकते हैं कि - जो महानुभाव मूर्ति पूजा के धर्म विरोधी पक्ष को जनता के गले मढ़ने और साधुमार्गी समाज की निंदा करने के लिए, हठ पूर्वक दो या तीन ही अर्थ मानकर बाकी के लिए इन्कार की आड़ ठोक देते हैं, वे कितने पक्षपाती होंगे? अब जरा उभय मान्य आगमों के भिन्न-भिन्न अर्थ भी देखिये - १. आचारांग सूत्र में - "रुक्खं वा चेइय कडं थूभं वा चेइय कर्ड' (व्यंतर युक्त वृक्ष या स्तूप) २. भगवती, उववाई, उपासक दशांगादि सूत्रों में - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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