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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा २३६ ********* ************************** हुई उसके १९३ वें पृष्ठ पर २६ वें दिन की कार्यवाही का विवरण करते हुए लिखा है कि -
“ए श्रमणो पोताना मूल हेतु ने भूली गया, संवर अने निर्जराना पाठो पढ़वाना स्थले धीमे धीमे आश्रवना द्वार पण तेमणे खुल्ला कर्यां अने अनेक जातना कलहो भयंकर बखेड़ाओं अने संसारीओ ने पण शरमावे तेवा आरम्भ समारम्भ मां व्यग्र थवा लाग्या, अने आजे तो सारासारनी तुलना रूप उपदेश भूली छड़े चोक तेओ आदेश मय शैली नो उपदेश करी रह्यो छे, फलाणा तुं आमकर? मन्दिरो बंधावो? मूर्तिओ पधरावो? पुष्प चन्दन थी पूजा करो? उपाश्रयो बंधावो, स्वामी भाइयो ने जमाडो? विरोधिओनो फेज करो? हेंडबोल बाजी थी तेमने थकवी नाखो? मंडलो काढ़ो? मोटरो दोड़ावो? वगेरे आ बधा उपदेश जैन शैली मुजब नथी।" ___ मूर्ति-पूजक श्री जयविजयजी महाराज “सद्बोध संग्रह" पृ० ६७ में लिखते हैं कि -
“कंचन कामिनी ना संग थी पण पाप माननार जैनसाधुओ वीतराग देवना नामे लाखो रुपया एकठा करवामां एक आंगी भांगी नाखीने बीजी घड़ाववामां, कुंडल, मुगट, हार, विगेरे दागीना घड़ाववा मां जैन प्रजा निर्धन बनती जाय छे छतां गामीगाम भीख मांगी एक बीजा नी देखादेखीए खास पैसा उघरावी देरासरों चणाववा मां दारु मांस खानार कारीगरों ने रंगीन काम मां लाखों रुपया अपाववामां हजारों दीवा बत्ती उघारी सलगती राखी मुंबई नी दीवाली नो चितार करवामां कोमल फूलों ने कातरी सीवीने निर्दयता करवा मां ग्यास तेल तथा बिजली ना दीवा बलवा मां, चरबी वाली मीणवत्तीओ सलगाववा मां, वेश्याना तथा त्रागलाना छोकराओने पैसा आपी भाडुती भक्ति करावी नाच कराववा
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