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क्या जैन
साधु ऐसा उपदेश दे सकते हैं?
१६. अमुक व्यक्ति साधुओं की टीका करता है, उसे संघ से बाहर निकाल दो।
२०. मूर्ति नहीं पूजने वाला यदि मन्दिर में आ जाय तो खून से मन्दिर को धोओगे तब शुद्धि होगी । (आगमोद्वारकजी ) २१. त्रिकाल पूजा करो ।
२२. धूप जलाओ, वह भी आकाश मण्डल में बादल छा जाय
ऐसा ।
२३. वादिंत्र बजाओ । अमुक तबले को ठीक मढ़वाओ । २४. नृत्य करो ।
२५. स्वामी वात्सल्य का जीमण करो ।
कहाँ तक गिनावें, ऐसे अनेक प्रकार के उपदेश ही नहीं आदेश दिये जाते हैं । उक्त नामावली तो केवल मूर्ति सम्बन्धी ही है। यदि अन्य आचार विषयक नमूने रखे जाय तो पाठकों के रोंगटे खड़े हो जायँ ? किन्तु विषयान्तर के भय से यहाँ केवल थोड़ीसी बातें बताई गई है । पाठक यह नहीं समझें कि उक्त बातें मैं अपनी तरफ से ही कह रहा हूँ, किन्तु येसी बातें सत्य हैं। जिनसे इन साधुओं का विशेष परिचय रहता है या जो इनलोगों के सामाजिक समाचार-पत्र तथा पुस्तकें देखते हैं, वे इस विषय में अनुभवी होंगे, फिर भी पाठकों की विशेष संतुष्टि के लिए कुछ प्रयत्न करता हूँ।
मूर्ति पूजक समाज के साधुओं का एक सम्मेलन अहमदाबाद में हुआ था, इसकी कार्यवाही यद्यपि गुप्त रखी जाती थी तथापि किसी प्रकार से एक दिन के समाचार दूसरे दिन जनता में पहुँच ही जाते थे। सम्मेलन की कार्यवाही समाप्त होने पर कुछ समय बाद इस विषय में एक पुस्तक “राज नगर साधु सम्मेलन" नाम से प्रकाशित
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