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२४० क्या जैन साधु ऐसा उपदेश दे सकते हैं? ********************************************* मां, कूवा खोदाववा मां तथा बाग बगीचा कराववा मां उपदेश आपे वा धर्म बतावे ए खरेखर दीलगीरीनी बात छे।"
स्वयं ज्ञान सुंदर जी अपने “मेझरनामे' में लिखते हैं कि - "रचनाकरावे पहाडनी, उभा हो?रहे पोते आप। अमुको लांबो पहोलो करो, अज्ञानी हो? रहे सेवे बहु पाप। सु०५ बंधावे उपासरा, करावे हो?. जीर्णोद्धार । गृहस्थ जेम उभा रहे, परभव नो हो? नहीं डर लगार। सु० ६ पौषधशाला उपासरा, निशंक हो? दिये आदेश। अहीं चौकी आलिउंकरो? अहीं बांचशेहो? व्याख्यान हमेशासु०७ अमुकी बारी मेडो करो, भंडारियुं हो? करो पुस्तक काज। ओछा जीवन कारणे, आज्ञा मुकी हो? नहीं आवे लाज। सु० ८ अणुमात्र पृथ्वी कायमां, जलबिंदुए हो? कह्या जीव असंख्य। त्रस थावर हणावतां, लज्जा छोड़ी हो? हुवा निःशंक। सु० ६
स्वाध्याय ध्यान धर्यु खुंटीए उभा भणावे हो! पूजा ना पाठ। सावध निर्विध नहीं गणे, आणा लोपी हो? करी मनना ठाठ।
सु० १३ चैत्यवासी पहेला कोई नहीं, भणाई हो? कोई पूजा साध। आगम पाठ दीसे नहीं, पासत्थाए हो? मुको मर्याद। सु० १४ साधु गावे रागथी, जेम जेम वागे हो? मृदंग ताल। द्रव्यस्तव जेणे सेवियो, द्रव्यलिंगी हो? भावे कह्या बाल। सु० १५ अमुको करो अमुको करो, लावो मुको हो? वली बोले एम। चैत्यवासी बनी रह्यो स्वा? हो? साधु बोले केम। सु० १६
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