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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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इतना ही नहीं मूर्ति पूजक पत्रों में सूरिजी से इस विषय में कई प्रश्न भी किये गये और कुछ दिनों तक इस प्रकरण की चर्चा भी रही । चाहे कुछ भी हो, किन्तु इस विषय में पहले से ही सूरिजी का हाथ रहा हो, ऐसा मानने को प्रत्येक विचारक तैयार होंगे, इसमें शंका को स्थान ही नहीं है।
चौथा उदाहरण और देखिये -
(४) अजमेर के म्युजियम में एक पाषाण खण्ड है, जिसके विषय में श्रीमान राव बहादुर पं० गौरीशंकरजी हीराचन्दजी ओझा ने लिखा है कि इस पाषाण खण्ड पर के लेख पर से ज्ञात होता है कि यह वीर संवत् ८४ में लिखा गया। इसके सिवाय ओझा जी ने यह नहीं लिखा कि - यह लेख किसी मूर्ति का है या मन्दिर का, सिर्फ शिलालेख होने का ही स्वीकार किया है। किन्तु साधुमार्गी समाज का विरोध करते हुए मूर्ति पूजक महात्मा दर्शन विजय जी 'जैन सत्य प्रकाश' मासिक वर्ष १ अंक १० माह अप्रेल पृ० ३३० में इसी पाषाण खण्ड को जिन प्रतिमा बता कर लिखते हैं कि -
"अजमेर नी म्युजियम मां वी० नि० सं० ८४ मां बनेल जिन प्रतिमा छे ।"
यह बिलकुल झूठ है। स्थानकवासी समाज के भोले लोगों को धोखा देने के लिये ही इस पाषाण खण्ड को जिन मूर्ति कहा है । मैंने स्वयं अजमेर म्युजियम के इस पत्थर को देखा है, यह पत्थर लगभग १२-१३ ईंच लम्बा और ε- १० ईंच चौड़ा तथा चार ईंच के लगभग मोटा है। इस पत्थर से यह पाया जाता है कि यह मूर्ति का नहीं है क्योंकि ऐसे पत्थर की मूर्ति प्रायः नहीं बनती, मेरे अनुमान से यह पत्थर किसी घर का शिलालेख ही है, पत्थर में किसी मूर्ति की आकृति
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