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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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__ और देखिये - श्री अनाथी मुनि को सम्राट् श्रेणिक ने भोग का निमंत्रण दिया, धन दौलत और सुन्दरियों से उन्हें समृद्ध कर उच्च प्रकार से सेवा करने की प्रार्थना की। किन्तु इस विपरीत सेवा को श्री अनाथी मुनि ने स्वीकार नहीं किया और अन्त में पूज्य की योग्यता और रुचि के प्रतिकूल भोग विलास की प्रार्थना करने के फल स्वरूप श्रेणिक को पूज्य से क्षमा याचना करके पछतावा करना पड़ा।
इसके अतिरिक्त आपके उदाहरण के उत्तर में निम्न उदाहरण और लीजिये - एक राजपूत जो सदैव मदिरापान और मांस भक्षण करता है, उसके घर यदि कोई सात्विक प्रकृति का जैन या ब्राह्मण चला जाय तो वह उस अतिथि के सामने उसकी रुचि के अनुकूल सात्विक वस्तुएं ही रखेगा, बल्कि जब तक आगत अतिथि उसके यहाँ रहेगा तब तक वह स्वयं भी अपेय और अखाद्य वस्तु से दूर रहेगा, तब ही उसका सत्कार उन मेहमानों के अनुकूल होकर स्वीकार्य होगा। किन्तु इससे विपरीत यदि वह राजपूत उन ब्रह्मदेव के सामने मदिरा की प्याली रखकर पीने की प्रार्थना करे और अखाद्य वस्तु दिखाकर निवेदन करे कि - महात्मन्! पावन कीजिये, ऐसी दशा में उस क्षत्रिय की प्रार्थना उस द्विजवर्य के लिए स्वीकार्य होगी क्या? उस राजपूत के ऐसे व्यवहार को वह ब्राह्मण क्या समझेगा? आदर या अपमान?
सुन्दर मित्र! आप अपने को ही लीजिये, जब आप भिक्षा के लिए किसी श्रद्धालु भक्त के यहां पधारें, तब वह भक्त आपसे स्नान करने का आग्रह करे और फिर कुछ फल-अनार, संतरे, सेव, अंगूर, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, पान के बीड़े, इलायची आदि रखे, इत्र से भर कर इत्रदानी हाजिर करे, गादी बिछाकर पाटला रख दे और फिर आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करे कि भगवन्! बिराजिये, पावन
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