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भक्ति या अपमान
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में होकर उस परोपकारी पुरुष की सेवा और स्वागत ही करेगा। आप ही बतलाइये कि आपके मन में ऐसे परोपकारी पुरुष के देखते ही क्या पूज्यभाव पैदा न होगा? क्या आप उनकी अपनी शक्ति के अनुसार पुष्पादि से पूजा नहीं करेंगे? यदि हाँ, तो फिर उस परम प्रभु के विषय में ही ये निर्मूल शंकायें क्यों की जाती हैं?
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सुन्दर मित्र शायद यह भूले हुए हैं कि आदर सत्कार या पूजा आदरणीय पूज्य के अनुकूल रुचिकर वस्तुओं से होती है प्रतिकूल और त्याज्य पदार्थों से नहीं, यदि कोई मनुष्य अपने यहाँ आये हुए आदर पात्र सज्जन के स्वागत करने में उनके प्रतिकूल घृणित वस्तुएं काम में लेगा तो इससे वह आगत सज्जन प्रसन्न नहीं होकर उल्टा नाराज हो जायगा, जैसे कि श्री हेमचन्द्राचार्य ने ऋषभचरित्र में लिखा है कि जब प्रथम जिनेश्वर श्री आदिनाथ स्वामी भिक्षाचरी के लिए निकलते तब कितने ही भावुक उनकी आवश्यकता के पदार्थों की अनुकूलता को न समझ कर उनके सामने हीरे, जवाहिरात, हाथी, घोड़े, कुमारिकायें और पुष्पमालायें आदि प्रतिकूल अनावश्यक और त्यागी हुई वस्तुएं लाते गये, जिन्हें प्रभु स्वीकार नहीं करते थे * अन्त में श्रेयांसकुमार के द्वारा दिया हुआ अचित्त इक्षु रस, जो कि प्रभु कें अनुकूल था, ग्रहण किया गया । इसी से यह समझ लेना चाहिए कि पूजा पूज्य के अनुकूल और उपयोगी वस्तुओं से ही करनी चाहिए, उसी पूजा को पूज्य स्वीकार करते हैं, वही पूजा पूजा है। इसके विपरीत पूज्य की रुचि के प्रतिकूल सामग्री से की हुई पूजा वास्तव में पूजा नहीं, अपमान है ।
'देखो त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र पर्व १ सर्ग ३ |
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