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________________ १६० **** स्थापना सत्य में समझ फेर Jain Education International ***** अथवा - "जणवय सच्चे, समुदित सच्चे, ठवणा सच्चे, नाम सच्चे, रूव सच्चे, पडूच्च सच्चे, ववहार सच्चे, भाव सच्चे, जोग सच्चे, उवम्म सच्चे ।" (पन्नवणा सूत्र का ११ वां भाषापद) अर्थात् - दश प्रकार का सत्य कहा, यथा - १. जनपद सत्य २. संमत सत्य ३. स्थापना सत्य ४ ६. प्रतीत्य सत्य ७. व्यवहार सत्य ८ १० और उपमा सत्य ।. इस प्रकार दश प्रकार के सत्य में तीसरा नम्बर स्थापना सत्य का है, जिसका तात्पर्य यह है कि स्थापना को भी सत्य मानना अर्थात्स्थापना को स्थापना मानना, इसका निषेध नहीं करना, किन्तु इसका यह मतलब नहीं कि स्थापना को उसकी सीमा या उपयोगिता से सिवाय महत्त्व देकर उसके साथ साक्षात् सा व्ययहार करना। जिस प्रकार रुपये पैसे के चित्र को न तो साक्षात् रुपया या पैसा मानना और न उसे रुपये आदि की स्थापना मानने से इन्कार करना, जम्बुद्वीप के नक्शे को नक्शा मानना सत्य है, किन्तु उसे ही जम्बुद्वीप मान लेना सीमोल्लंघन कर जाने से सत्य के बजाय मिथ्या हो जाता है। हाथी घोड़े के मिट्टी के बने हुए खिलौनों को हाथी घोड़े की स्थापना मानना सत्य है, पर साक्षात् मानना मिथ्या है, राजा या सम्राट के चित्र को चित्र मानना सत्य है, पर चित्र को ही साक्षात् मानना और उसके सामने भेंट आदि रखना मिथ्या है। यही स्थापना सत्य का परमार्थ है । इसे हम अवश्य मानते हैं, किन्तु जो लोग स्थापना को सीमातीत मान देते. हैं, वे सत्य को छोड़कर मिथ्या प्रवृत्ति करने वाले होते हैं, यदि सांसारिक व्यवहारों में भी देखा जाय तो स्थापना का यही उपयोग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org नाम सत्य ५ रूप सत्य भाव सत्य ६. योग सत्य
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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