________________
जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
*************
१८६
**
****
तब कथाकार उदयन को कठिनता से और प्रभावती देव द्वारा कितनी ही वार प्रतिबोध होने पर धर्म के अभिमुख होने का लिख रहे हैं । सूत्रकार प्रभावती की दीक्षा के लिए मौन पकड़ रहे हैं, तब कथाकार उसे मूर्ति के सामने नाचने और वह भी मूर्ति मोह में इतनी मस्त कि भान ही भूल जाने वाली तथा अनिष्ट सूचन से संयम के अभिमुख होने वाली और संयम लेते-लेते मूर्ति पूजा के लिए वस्त्र में फेरफार दिखाई देने से एक दासी को यमपुर पहुंचाने वाली लिख दिया है। समझ में नहीं आता कि ऐसे औपन्यासिक ढंग के कथानकों पर से ही सुन्दर मित्र क्यों भान भूल होकर साधुमार्ग समाज के दुश्मन हो रहे हैं।
हम तो यही चाहेंगे कि सुन्दर हृदय में अनन्तानुबन्धी की चाण्डाल चौकड़ी बैठी हो तो वह अपना स्थान हटा शीघ्र ले, जिससे इनकी आत्मा का भला हो ।
(२७)
स्थापना सत्य में समझ फेर
कितने ही मूर्ति पूजक जानते हुए भी भोले लोगों में यह भ्रम फैलाते हैं कि देखो ठाणा और प्रज्ञापना सूत्र में " स्थापना सत्य" कह कर मूर्ति पूजा की सत्यता स्वीकार की है और इसी प्रकार ज्ञानसुन्दरजी ने भी भ्रम फैलाया है, किन्तु इन लोगों का यह प्रयत्न सत्य से दूर है, इस विषय में विशेष स्पष्टता के लिए हम सारे मूल पाठ यहाँ दे देते हैं
"दसविहे सच्चे प० तं० जणवय, सम्मय, ठवणा, नामे, रूवे, पडुच्च - सच्चेय, ववहार, भाव, जोगे, दसमे ओवम्म सच्चेय । " (ठाणांग सूत्र ठा० १० )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org